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________________ iny ११, प्रजावर्ग के पुरुष सत्पात्र १२. प्रजावर्ग के कुटिल पुरुषपात्र १३. प्रजावर्ग के स्त्रीसत्पात्र जिनमति, मनोरमा, गुणमति, बिषा, वसन्तसेना एवं सुमित्रा । १४. प्रजावर्ग के कुटिल स्त्रीपात्र कपिला, देवदत्ता तथा कपिला की दासी (क) मानवेतर वर्ग १५. देववर्ग के पुरुष सत्पात्र १६. देववर्ग के स्त्री सत्पात्र १७. व्यन्तर वर्ग के कुटिल पुरुष पात्र महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक अध्यय गौतम इन्द्रभूति, वृषभवास, सुदर्शन, सागरदत्त, कपिल, महाबल, सोमदत्त, गोबिन्द, भद्रमित्र, सुदत्त, वधिक एवं चाण्डाल । सेठ गुणपाल १८. व्यन्तरवर्ग के कुटिल स्त्री पात्र इन्द्र तथा अन्य देवगण इन्द्राणी तथा अन्य श्री, ही प्रादि देवीगरण व्यन्तरी की योनि में अवस्थित सर्पिरणी का स्वामी व्यन्तर, मकररूपधारी देव तथा स्त्रीरूप धारी देव । सर्पिणी २ पात्रों का कुल योग ७६ उपर्युक्त सारिणी से स्पष्ट है कि कवि ने प्रपने काव्यों में कुल ७६ पात्र प्रयुक्त किये हैं। इनमें से मानव वर्ग में ६८ भोर मानवेतर वर्ग में ८ पात्र माते हैं। मानव वर्ग के कुल पुरुष पात्रों की संख्या ४४ है । इनमें से ४० पात्र सत्पात्र हैं मोर ४ कुटिल हैं। मानव वर्ग के स्त्रीपात्रों की संख्या २४ है । इनमें से १६ सत्पात्र हैं और ५ कुटिल पात्र । देववर्ग में चार पात्र हैं, पर हैं सभी सत्पात्र । व्यन्तर वर्ग में भी चार ही पात्र हैं, पर ये सभी कुटिल पात्र हैं । महाकवि ज्ञानसागर के पात्रों के उपरिलिखित वर्गीकरण में 'मानव वर्ग' से हमारा तात्पर्य उस वर्ग के पात्रों से है जो पृथ्वी पर जन्म लेते हैं; बढ़ते हैं और प्रपनी जीवनलीला इसी बसुन्धरा पर करते हैं। इस वर्ग में भी वरीयता की दृष्टि से हमने ऋषिवर्य को सर्वप्रथम माना है । (क) विवर्ग श्री ज्ञानसागर के काव्यों में ऋषिवर्ग के पात्रों में हमने उन्हें माना है जो मोक्ष की घोर प्रसर हैं, पूर्णतया सत्त्वगुणोपेत हैं; सांसारिक भोगविलासों से मिलिप्त हैं, प्रज्ञानान्धकार में निमग्न जनता के प्रबोधक हैं, अपने देवोपम व्यवहार से मानवलोक एवं देवलोक के मध्य में स्थित रहते हैं प्रोर मनुष्य जैसे होते हुये भी भपने 'दिव्य गुणों के कारण सर्वबन्ध है ।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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