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महाकवि ज्ञानसागर की पात्रयोजना
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उपर्युक्त रेखाचित्र को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि श्री ज्ञानसागर के काव्यों में हमें अठारह कोटि के पात्र गोचर होते हैं । निम्नलिखित सारिणी से यह भी स्पष्ट हो जायगा कि कवि के समस्त पात्र कितने हैं ? और किस कोटि में प्राते हैं
कोटि
१. (क) मानव वर्ग
वर्ग
४.
५.
ऋषिवर्ग के पुरुष पात्र
२. ऋषिवर्ग के स्त्री पात्र
३. राजवर्ग के पुरुषसत्पात्र
राजवर्ग के कुटिल पुरुषपात्र राजवर्ग के स्त्रोत्पात्र
६. राजवर्ग के स्त्री कुटिलपात्र ७. राजसेवक वर्ग के
पुरुष पात्र
८. राजसेवक वर्ग के पुरुष कुटिल पात्र
६. राजसेवक वर्ग के
स्त्री सत्पात्र
१०. राजसेवक वर्ग के कुटिल स्त्री पात्र
नाम
संख्या
स्वप्नावली का अर्थ बताने वाले ऋषिराज, सेठ वृषभदास को दीक्षा देने वाले मुनिराज, सोमदत्त के पूर्वजन्म की कथा सुनाने वाले मुनि, सोमदत्त के मन में वैराग्यभावना जगाने वाले मुनिराज, वरधर्म मुनिराज, पूर्णविधु मुनि, हरिश्चन्द्र मुनि, भद्रबाहु पिहिताश्रवमुनि, जयकुमार को उपदेश देने वाले मुनिराज एवं ऋषभदेव । गुणवती प्रायिका, दान्तमति एवं हिरण्यवती ।
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सिद्धार्थ, वर्धमान, धात्रीवाहन, वृषभदत, सिहसेन, पूर्णचन्द्र, राजा अपराजित, जयकुमार, प्रकम्पन, भरतचक्रवर्ती एवं जयकुमार का पुत्र । अर्ककीर्ति ।
प्रियकारिणी, वृषभदत्ता, गुणमाला, रामदत्ता, सुन्दरी, चित्रमाला, सुलोचना प्रौर अक्षमाला ।
रानी श्रभयमती ।
धम्मिल्ल, द्वारपाल, वृषभदत्त का सेवक, काशीनरेश का दूत, अनवद्यमति मंत्री एवं aratवाहन का राजबधिक ।
सत्यघोष तथा प्रर्ककीर्ति का सेवक
रामदत्ता की सेविका तथा विद्यादेवी ।
पण्डिता दासी
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