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________________ पञ्चम अध्याय महाकवि ज्ञानसागर की पात्रयोजना (क) काव्य में पात्रों का महत्त्व 'पात्र' शब्द का तात्पर्य है-रक्षा करने वाला। इस दृष्टि से यदि हम काव्य में 'पात्र' की परिभाषा करें, तो उस परिभाषा की शब्दावली होगी--'काव्य में कथानक की रक्षा करने वाले व्यक्तियों को पात्र कहा जाता है।' किसी भी काव्य के लिए कथानक-तत्व बहुत प्रावश्यक हैं; किन्तु इस तत्त्व की महत्ता, उस काव्य में प्रयुक्त पात्रों पर प्राधारित होती है। भोजन को महत्ता भोक्ता पर, सष्टि रूपी रंचमंच की महत्ता जीवधारी रूप कलाकार पर, शरीर की महत्ता उस शरीर में रहने वाली शक्ति पर निर्भर है, इसी प्रकार काव्य के कथानक की महत्ता पात्रों पर प्राधारित है । पात्रों को कथानक रूपी शरीर की शक्ति माना जा सकता है। शक्ति के बिना शरीर शव ही होता है, इसी प्रकार पात्रों के बिना कथानक की सत्ता नहीं मानी जा सकती है। जिस प्रकार किसी सुरभित कुसुम के चारों मोर भ्रमर मंडराते हैं, उसी प्रकार कथानक के चारों मोर पात्र घूमते रहते हैं । प्रतः काव्य के कथानक प्रौर पात्रों के सम्बन्ध को प्रस्वीकृत नहीं किया जा सकता । एक पाचक अपने भोजन की प्रशंसा भोक्ता के माध्यम से सुन सकता है, इसी प्रकार कवि अपने कथानक का प्रशंसनीय प्रस्तुतीकरण पात्रों की समुचित योजना से हो कर पाता है। पात्र ही कवि के मानदण्डों को सामाजिक तक पहुँचाते हैं। जिस प्रकार यज्ञ में अग्नि ही यजमान की माहुति देवगणों तक पहुंचाता है, उसी प्रकार कवि इन पात्रों के माध्यम से स्वयं को समाज के बीच पहुंचाने में समर्थ होता है। पात्रों के माध्यम से ही कवि अपने साहित्य को समाज का दर्पण बना पाता है। नाटककार की तो सारी सफलता पात्रों के ही प्रस्तुतीकरण पर निर्भर करती है । नाटक के अतिरिक्त उपन्यास, महाकाव्य और खण्डकाव्यों के लिए भी काव्यशास्त्री पात्रयोजना में महत्त्व का उद्घोष करते प्रतीत होते हैं, तभी तो वे कहते हैं कि काव्य को कथा किसी सज्जन के जीवनवृत्त पर भाषारित होनी चाहिए। काव्य का जायक उदात्त होना चाहिए मोर काव्य में उसकी विजय भी दिखाई जानी चाहिए। प्रतएव किसी भी कवि की काव्य के कथानक के ही समान पात्रों की योजना का भी ध्यान रखना चाहिए । काग्य में पात्रों की संख्या ऐसी हो कि पाठक पूरा
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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