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महाकवि ज्ञानसागर के काग्य-एक अध्ययन
कवि के पार्शनिक प्रन्थ
उपर्युक्त साहित्यिक ग्रन्थों के अतिरिक्त कवि ने संस्कृत भाषा में दो पार्शनिक अन्य भी लिखे हैं-प्रवचनसार एवं सम्यक्त्वसारशतक । प्रबचनसार में द्रव्य का स्वरूप निरूपित किया गया है; भोर सम्यक्त्वसारशतक में सम्यक्त्व का स्वरूप एवं सम्यकदृष्टि, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र-नामक उसके तीन प्रकारों के विषय में बताया. गया है। दोनों ही ग्रन्थों की उक्त वर्ण्य-वस्तु दार्शनिक है। इन दोनों ही ग्रन्थों में काव्य-शास्त्रीय विमानों का कोई भी लक्षण नहीं मिलता है। चूंकि हमें अपने शोध-प्रबन्ध में कवि की संस्कृत भाषा में रचित साहित्यिक कृतियों का ही मूल्यांकन करना है, इसलिए इन दोनों दार्शनिक कृतियों का परिचय हम यहाँ न देकर शोधग्रन्थ के परिशिष्ट भाग में जहाँ कवि की हिन्दी रचनामों का परिचय दिया जायगा, प्रस्तुत करेंगे।
सारांश इस प्रकार श्री ज्ञानसागर की कृतियों के काव्यशास्त्रीय परिशीमन से यह ज्ञात हो जाता है कि कवि ने संस्कृत भाषा की साहित्यिक विधा में चार महाकाव्य, एक चम्पूकाव्य मोर एक मुक्तक काव्य की रचना की है। कवि की ये सभी साहित्यिक कृतियां उसकी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय देती हैं । साहित्य के प्रायः अधिकांश ग्रन्थों में रसराज शङ्गार की महिमा गाई गई है, किन्तु कवि की रचनात्रों के परिशीलन से स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने सभी रसों की परिणति शान्त रस में मान ली है । पूर्वजन्म की कपात्रों से बोझिल 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' के अतिरिक्त अन्य किसी भी रचना में कथानक का प्रवाह अवरुद्ध नहीं हुमा है । 'सुदर्शनोदय' और 'दयोदय' के कथानकों में तो अद्भुत प्रवाह है। काव्यशास्त्रीय मानदण्डों को स्वीकार करती हुई महाकवि ज्ञानसागर की ये सभी साहित्यिक कृतियाँ सहृदय सामाजिकों, धार्मिकों और काव्यशास्त्रियों को सन्तुष्ट करने में पूर्णतया समर्थ हैं।