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________________ काव्यशास्त्रीय विषाएं ही हैं, दृश्य नहीं । श्रोता को कभी गद्य का मानन्द मिलता रहे और कभी पद्य का। 'पम्पूकाव्य का यह लक्षण 'दयोदय' में घटित होता है । ३. प्रबन्धात्मकता ___'योदय' में मृगसेन धीवर मोर घण्टा धीवरी की कथा क्रम से विद्यमान है । इस कथा का स्रोत हरिषेणाचार्य रचित 'बहत्वथाकोश' है । मगसेन धीवर एक मुनि के उपदेश से प्रभावित होकर अहिंसा धर्म को स्वीकार कर लेता है; और पत्नी को फटकार सुनकर एक धर्मशाला में पहुँचकर लेट जाता है । वहाँ एक सर्प के डसने से उसकी मृत्यु हो जाती है । पति को ढूंढती हुई घण्टा-धीवरी भी उसी धर्मशाला में पहुँचती है; और सपं के काटने से उसकी भी मत्यु हो जाती है। धीवर सोमदत्त के रूप में पोर धीवरी श्रेष्ठी की पुत्री के रूप में उत्पन्न होती है। गुणपाल श्रेष्ठी के बाधक होने पर भी सोमदत्त का विवाह गुणपाल श्रेष्ठी की पुत्री विषा से हो जाता है । सोमदत्त के तेजस्वी व्यक्तित्व मे प्रभावित होकर राजा भी अपनी पुत्री का विवाह सोमदत्त से कर देता है; और अपना प्राधा राज्य भी उसे दे देता है। एक मुनिराज के दर्शन के फलस्वरूप सोमदत्त पोर उसकी दोनों पत्नियों को वैराग्य हो जाता है । तपश्चरण के फलस्वरूप तीनों को स्वर्ग मिल जाता है । स्पष्ट है कि एक ही कथा के पल्लवित होने के कारण 'दयोदय' प्रबन्धकाव्यगुणोपेत है। ४. वर्णन-प्रधान-- 'दयोदय में कवि ने प्राकृति : पदार्थों मोर वृत्तान्तों का प्रसंगानुसार वर्णन किया है। प्रातःकाल, रात्रि, शिप्रा नदी, उज्जयिनीनगरी, विषा-सोमदत्त का विवाह मुनि-माहात्म्य एवं गुणपाल की हठधर्मिता का वर्णन कवि ने प्रत्यन्त मालंकारिक शैली में किया है। १. दयोदयचम्पू, ३ श्लोक ७ के पूर्व के गद्यभाग, ७-६, श्लोक के बाद के गद्यभाग। २. वही, २ श्लोक २ से पूर्व का गद्य भाग एवं श्लोक २ ३. वही, पृ० १० का गवभाग ४. वही, १११०-११ ५. वही, ४१८-२५ ६. वही, १११८, श्लोक २२ से पूर्व का गद्यभाग और २२-२६, ७ श्लोक १७के बाद के गद्यभाग से श्लोक ३७ के बाद के गद्यभाग तक । ७. बही, १११५
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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