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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन ६. सरस 'चम्पूकाव्य' काव्य की श्रेणी में प्राता है, प्रतः अन्य काव्यों के समान उसमें भी काव्य की प्रात्मा.रस को विद्यमानता अपेक्षित है। ७. उदात्तनायकोपेत चम्पूकाव्य की कथा किसी श्रेष्ठ नायक से सम्बन्धित होनी चाहिए। ६. गुरण ___ यथास्थान इसमें प्रसाद, माधुय्यं पौर मोज गुणों का समावेश होना चाहिए। ६. मागों में विभक्त __ महाकाव्य सगों में निबद्ध कथा बाला काव्य है, इसी प्रकार चम्पू-काम्य की कपा भी उच्छवास, अंक, लम्ब इत्यादि में विभक्त होनी चाहिए। १०. चमत्कारप्रधान चमत्कार का तात्पर्य है - उक्ति की विचित्रता। यह लक्षण प्रायः सभी कायों में घटित होता हैं; किन्तु पम्पूकाव्य में गद्य-पद्य के माध्यम से कवि को दुगुना चमत्कार दिखाने का अवसर प्राप्त हो जाता है। प्रत: 'चम्पूकाम्य' प्रन्य काव्यों की तुलना में अधिक चमत्कार प्रधान होता है।' ___अब देखना यह है कि दयोदय' काव्य में 'चम्पू-काव्य' की कौन-कौन विशेषताएं प्राप्त होती हैं :१. गव-पच-मिश्रण दयोदय के परिशीलन से ज्ञात हो जाता है कि उसमें गद्य-पद्य का अद्भुत संमिश्रण है। कवि ने गद्य और पद्य का यथेच्छ व्यवहार किया है। कहीं-कहीं पचों के पतिशय प्रयोग के मध्य गरा के दर्शन भी नहीं होते, तो कहीं पर पद्य पोर गय को साथ-साथ प्रयुक्त किया गया है। कवि का न तो गर के प्रति विशेष माग्रह है पोर न पद्य के प्रति । गय मोर पद्य के प्रति निष्पक्ष व्यवहार ही कवि को प्रभीष्ट है। भव्यकाण्यत्व काव्य की मुख्य रूप से दो विधाएं है-दृश्य और श्रब्य । पम्पू-काव्य गयकाम्य पौर पद्य काव्य रूप अन्य काव्यों का मिषण है; प्रतः वह भी श्रव्य-काम्य १. (क) विश्वनाषः साहित्यदर्पण, ६३३६-३३७ (ख) दण्डी : काव्यादर्श, ११३१ (ग) हेमचन्द्राचार्यः काम्यानुशासन, CE (घ) त्रिविक्रमभट्टः नलचम्पू १।२४-२५ (5) डॉ. छविनाथ त्रिपाठी: चम्पू काव्य का मालोचनात्मक एवं साहित्यिक अध्ययन, प.सं. ४
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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