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महाकवि मानसागर के काव्य-एक अध्ययन ५. अलंकारसुसज्जित
कवि ने 'दयोदय' को शब्दालंकारों और अर्थालंकारों से सुसज्जित किया है। अन्त्यानुप्रास,' श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, विषम इत्यादि प्रलंकारों की छठा काव्य में विशेष दर्शनीय है।
६. सरस
वैसे तो 'दयोदय' में शङ्गार रस, वत्सल रस मोर भक्तिभाव का मास्वादन पाठक को यत्र-तत्र होता रहता है। किन्तु कवि की सभी फतियों की भांति इस काव्य का मङ्गोरस शान्त ही है । ७. उनातनायकोपेत_ 'दयोदय' काव्य की कथा एक ऐसे व्यक्ति पर प्राधारित है, जो अपने पूर्वजन्म में एक ऋषि के उपदेश से प्रभावित होकर अहिंसा-व्रत अपना चुका पा; और मुनि के आदेशानुसार उसने जाल में माई मछली को जीवन-दान दिया था। अपने वर्तमान में वह एक मातृ-पितृविहीन बालक के रूप में गुणपाल को कुदृष्टि से बचता हुमा एक ग्वाले के पास पहुंच जाता है । बार-बार गुणपाल की दुर्भावना का शिकार होने से बचता है । सेठ गुणपाल की पुत्री विषा और राजकुमारी गुणमाला से उसका विवाह होता है । राजा उसके गुणों पर रीझ कर अपना आषा राज्य उसे सौंप देता है। अन्त में ऋषि का उपदेश सुनकर सोमदत्त को वैराग्य हो जाता है पौर वह जैन-मुनि बन जाता है । इस प्रकार काव्य का नायक सोमदत्त सौन्दर्यशाली दिव्यगुणोपेत, दयालु और सरलहृदय है । प्रतः 'दयोदय' की कपा एक निर्मल चरिण वाले व्यक्ति पर माषारित है।
१. दयोदयचम्पू, १।२६, २।३२, ६।३ २. वही, ७१२ ३. वही, ३ श्लोक ६ के बाद के गद्य भाग । ४. वही, ३ श्लोक ७ पौर उसके पूर्व के गद्यभाग। ५. वही, २१३१ ६. वही, २५ ७. वही, ४।१४-१६ ८. .बही, ३ श्लोक १० के बाद के गधमाग । ९. वही,७ पु. १४३ का गीत । १०. वही, ७ श्लोक १७ के बाद के नवभाग से श्लोक ३५ तक।