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महाकवि शानसागर के कान्य-एक अध्ययन
पुरुषार्थ की पोर अग्रसर है।' कवि ने सुदर्शन के जन्म से लेकर निर्वाण तक के सभी वृत्तान्तों का उल्लेख काव्य में कर दिया है। 'स दर्शनोदय' के परिशीलन से ज्ञात होता है कि सुदर्शन का शत्रु और कोई नहीं, उसका रूप और गुण ही उसके शत्रु हैं, इन्हों के कारण रानी अभयमती, कपिला ब्राह्मणी और देवदत्ता वेश्या उस के मोक्षमार्ग में बाधक बनती हैं। किन्तु सुदर्शन अपने रूप के प्रति निस्पह है; अतः वह इन कुटिन स्त्रियों की कुचेष्टानों के प्रति भी निःस्पह ही बना रहता है; और विजय भी प्राप्त करता है। तीनों ही स्त्रियों को उसके पर्वत तुल्य व्यक्तित्व के समक्ष मुकना पड़ता है; और सुदर्शन मोक्षरूप अभ्युदय को प्राप्त कर लेता है। १४. उदर्शनोहर' सेठ सुदर्शन की कथा पर प्राधारित काव्य है । काव्य के नाम से स्पष्ट है कि कवि ने काव्य का नाम नायक के नाम पर रखा है। सुदर्शन इस काव्य का दायक है; और सुदर्शन द्वारा मोक्ष रूप पुरुषार्थ की सिद्धि से शान्त रस की संस्थापना ही कवि का मुख्य लक्ष्य है । काव्य के नायक और मुख्य रस के स्थापन के उद्देश्य से ही कवि ने काव्य का नाम 'सूदर्शनोदय' रखा है।
इस प्रकार 'सदर्शनोदय' के परिशीलन से और उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि 'सुदर्शनोदय' शङ्गार रस से परिपुष्ट शान्त रस प्रधान महाकाव्य है। उसका कलेवर 'जयोदय' और 'वीरोदय' के समान विशालकाय नहीं है, तथापि महाकाव्य के सभी गुण उसमें परिलक्षित हैं । अपने अन्य काव्यों की भाँति कवि ने इस काव्य में भी नायकाभ्युदय को बड़े कौशल से दर्शाया है। उनके शब्दालंकारों और मनमाने ढंग से प्रयुक्त छन्दों ने कहीं भी कथानक के प्रवाह को अवरुद्ध नहीं किया है। इस काव्य में महाकाव्य की सभी विशेषताएं सहज ही में प्राप्त हैं; इसलिए हम निर्विवाद रूप से इसको महाकाव्य की कोटि में पहुँचा हुअा काव्य मान सकते हैं। इस काव्य को एक और विशेषता है जिसके कारण यह काव्य सहृदयग्राहा बन जाता है;-वह है इसमें स्थल-स्थल पर पात्रों के मनोभावों को प्रकट करने वाले सुन्दर रागों में बद्ध गीतों की विधमानता। भीसमुद्रवत्तचरित्र
अब श्रीज्ञानसागर की चतुर्थ कृति 'श्रीसमुदत्तचरित्र' के परीक्षण का क्रम है । महाकाव्य की विशेषतामों द्वारा इस काव्य के परीक्षण से यह सिद्ध हो जाता है कि 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' भी एक महाकाव्य है। विद्वानों के संतोष हेतु हम काम्प की महाकाव्य-सम्बन्धी विशेषतामों का प्रस्तुतीकरण कर रहे हैं :-- १. इस काव्य की कथावस्तु नो सों में निबद्ध है। २ इस काव्य के प्रारम्भ में मङ्गलाचरण के रूप में भगवान् ऋषभदेव, भगवान् वर्षमान एवं अन्य तीर्थङ्करों की वन्दना की गई है।
१. सुदर्शनोक्य, ८।१४-२७