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काव्यशास्त्रीय विधाएँ
"सार्धं सहस्रद्वयात्तु हायनानामिहाद्यतः । बभूवायं महाराजो महावीरः प्रभोः क्षरणे ॥”
—सुदर्शनोदय, १।४५ काव्य का यह श्लोक धात्रीवाहन की राजधानी चम्पापुरी से ही आगे की कथा संबद्ध है, ऐसी सूचना देता है । कवि ने प्रत्येक सर्ग का नामकरण उस सगं में वरिंगत कथा के आधार पर किया है । यथा - काव्य में प्रथम सर्ग में अंगदेश के
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वाहन का वर्णन है; इसीलिए सगं का नाम कवि ने 'देशादेनं पतेश्च वर्णनपरः प्राद्यः सर्गः' रखा है । इसी प्रकार द्वितीय सर्ग में सुदर्शन की माता उसके जन्म से पूर्व कुछ सुन्दर स्वप्न देखती है, जिनका परिणाम सुदर्शन के माता-पिता एक ऋषि से ज्ञात करते हैं; अतः सगं का नाम कवि ने 'श्रीयुक्तस्य सुदर्शनस्य जननी स्वप्नादिवाक्सम्मतः द्वितीयः सर्गः रखा है ।
११. 'सुदर्शनोदय' में कवि ने अनेक उत्तम उपमालंकारों का प्रयोग करके अपने प्रबल कला-कौशल का परिचय दिया है । 'जयोदय' एवं 'वीरोदय' की भाँति हो 'सुदर्शनोदय' में भी हमें प्रायः मन्त्यानुप्रास की शोभा दृष्टिगोचर होती है। इसके प्रतिरिक्त यमक, ' इलेष, २ उपमा, उत्प्रेक्षा, श्रादि अलंकार प्रमुख रूप से प्रयुक्त किये गए हैं ।
१२. काव्य के प्रारम्भ में ही कवि ने सज्जनों की प्रशंसा मुक्तकण्ठ से की है; कवि के अनुसार सज्जनों की परम्परा विपत्तियों का विनाश करने वाली होती है । " सुदर्शन का वध करने हेतु वर्षिक को प्राज्ञा देने वाले राजा धात्रीबाहन की, एक नागरिक से कवि ने जो निन्दा करवाई है उससे दुष्टों की हो निन्दा अभिव्यक्त होती है । ६
१३. महाकाव्य में स्थान-स्थान पर कवि ने सेठ सुदर्शन के गुणों का उल्लेख किया है। सुदर्शन जैन धर्म पर प्रास्था रखने वाला, ऋषि-मुनियों की भक्ति करने बाला, प्रपनी पत्नी मनोरमा से पूर्ण संतुष्ट, डढ़व्यक्तित्व वाला और मोक्षरूप १. सुदर्शनोदय, ३।१६, ६ सारंगनामराग ।
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२. वही, ५ प्रभातकालीन राग ।
३. वही, २०४३
४. वही, ३।७
५. बही, १८.६
६. वही, ८।३
७. वही, ३।३४, पंचम सर्ग के गीत, ७।११
८. वही, ४।१५, ४६, ६।२६-३२ ६. वही, ६।२२
१०. बही, ७/२६, ६/२६,८३