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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक अध्ययन
(क) शङ्गार रस', (ख) वात्सल्य रस, २ (ग) अदभुत रस, (घ) भक्तिभाव,४ (ङ) शृङ्गाराभास और शान्तरस । काव्य के परिशीलन से ज्ञात हो जाता है कि शान्तरस अंगी रस है । शेष रस एवं भाव इसके अंग हैं । ८. 'सुदर्शनोदय' में यथाशक्ति पांच सन्धियों' का निर्वाह हुआ है । काव्य के द्वितीय मर्ग में ऋषि ने वषभदत्त ग्रौर जिनमति के सम्मुख उनके पुत्र होने की घोषणा की है; यह काव्य की 'मुख मन्धि' है। तृतीय सर्ग में सदर्शन को उत्पत्ति का वात्सल्य रस' से परिपूर्ण वर्णन है; यह काव्य की 'प्रतिमुख-सन्धि' है। काव्य को चरमपरिणति सुदर्शन की मोक्ष-प्राप्ति में है; और काव्य का मुख्य रस है --शान्त रस । काव्य का यह उद्देश्य पिता की विरक्ति के पश्चात् स दर्शन के मुनि के प्रति कहे हुए विरक्तिपूर्ण वचनों में छिपा हमा है। अत: यह स्थल काव्य की 'गर्भ-सन्धि' है। काव्य में कपिला-ब्राह्मणी, प्रभयमती रानी और देवदत्ता वेश्या के प्रपंचों में जबजब सुदर्शन पड़ता है, तब-तब पाठक को यही लगता है कि सम्भवत: सुदर्शन अपने उद्देश्य को प्राप्त न करे । काव्य के ये सभी स्थल विमर्श-सन्धि के रूप में स्वीकार किये जा सकते हैं। अन्त में सदर्शन ने सभी विपत्तियों पर विजय प्राप्त की। उन्हें कैवल्यज्ञान भी प्राप्त हमा, तत्पश्चात् उन्होंने मोक्ष भी प्राप्त कर लिया .१' यह काव्य की निर्वहण-सन्धि' है, जिसके द्वारा कवि ने अपने उद्देश्य का निर्वाह किया है। ६. 'सुदर्शनोदय' में कवि छन्दों के प्रति स्वतन्त्र हो गये हैं। केवल पंचम सर्ग में ही मनुष्टुप् और अन्तिम नोक में द्रुतविलम्बित छन्द का प्रयोग किया गया है। इस सर्ग में भी बीच-बीच में गीत मा गए हैं । उपजाति, इन्द्रवज्रा, रथोद्धता, वंशस्थ, वमन्ततिलका, शार्दूलविक्रीडित छन्दों का क्रम-रहित प्रयोग इस काव्य में यत्र-तत्र मिल जाता है । उपजाति छन्द का काव्य में सर्वाधिक प्रयोग किया गया है। १०. 'सुदर्शनोदय' में 8 सर्ग हैं। प्रत्येक सर्ग का अन्त मागे के सगं की सूचना देता है, यथा१. सुदर्शनोदय, ३१३५ - - २. वही, ३६ ३. वही, ८१ ४. वही, ४१४६ ५. वही, ६।१७ ६. वही, ८।२५, ३२, ९८४ ७. वही, २०२६-४० ८. वही, ३।१-१५ ६. वही, ४।१५ १०. वही, ५।१-२०, ७।१०-३६, ६-१२-२६ ११. वही, ६।४८-८६