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काव्यशास्त्रीय विधाएं
"नमाम्यहं तं पुरुष पुराणमभूद युगादी स्वयमेकक्षाणः । थियोऽसि पुत्या दुरितच्छिदर्यमुत्तेजनायातितरां समर्थः । श्रीवदमानं भुवनत्रये तु विपत्पयोघेस्तरणाय सेतुम् । नमामि तं निजितमीनकेतुं न मामितो हन्तु यतोऽघहेतुम् ॥' प्रणोमि शेषानपि तीर्थनाथान् समस्ति येषां गुणपूर्णगाषा। भवान्धगर्ते पतते जनायाऽनुकीर्तितालम्बनसम्प्रदाया ॥"
--श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, १११, ३. गुणभद्राचार्य रचित 'महापुराण' इस कान्य के कथानक का स्रोत है। सारी हरिषेणाचार्यरचित 'बृहत्कथाकोश' भी। ४. कवि के अन्य काव्यों के समान ही यह काव्य भी मोक्षरूप पुरुषार्थ की सिद्धि करने वाला है।' ५. सत्यवादी भद्रमित्र इस काव्य का नायक है जो एक श्रेष्ठ वैश्य का पुत्र है। बाद में वह राजा सिंहचन्द्र, वेयक के महमिन्द्र ४. भोर चक्रायुष के रूप में भी जन्म ग्रहण करता है । सत्याचरण, जैनधर्म के प्रति निष्ठा, स्वावलम्बन प्रादि उसके प्रधान गुण हैं। ६. महाकवि ज्ञानसागर ने इस काव्य को विविध.वस्तुओं एवं वृत्तान्तों के वर्णन से इस प्रकार प्राच्छादित कर दिया है कि कभी-कभी पाठक भ्रान्त होकर मूल-कथानक से दूर भी चला जाता है । लीजिए प्रस्तुत है कवि के विविध वर्णन का परिचय । कवि ने इस काव्य में स्वर्ग, नरक,१० प्रलकापुरी'', चक्रपुर,२ विजयार्ष-पर्वत, राजा ऐरावण भोर राजकुमारी प्रियङ्गुश्री का विवाह,१४ चक्रायुष का जन्म १. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ७।३०-३३ २. वही, १-२६.३० ३. वही, ४१६ ४. वही, ५१६ ५. बही, ६।१५ ६. वही, ४।२-३ ७. वही, ७।३० ८. वही, ११३१-३६, २१-४ ६. वही, ४॥३६, ५॥१४, १५, ३३ १०. वही, ४।३७, ५॥३४ ११. वही, २०१० १२. वही, ६.१-८ १३. वही, २०१६ १४. वही, २१-६