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________________ १२४ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक अध्ययन १० प्रायः प्रत्येक सर्ग में अगले सर्ग में वर्णित घटना की सूचना है। जैसे सप्तम सर्ग में अर्ककीर्ति और जयकुमार के युद्ध की सूचना है, और पाठवें सर्ग में दोनों के युद्ध का वर्णन है । सर्गों का नाम भी उनमें घटना के माधार पर रखा गया हैयथा--प्रथम सर्ग में जयकुमार ने मुनि की वन्दना की है- इसलिये इस सर्ग का नाम 'मुनिवन्दनावर्णन सगं' है । चतुर्थ सगं में स्वयंवर के लिये प्रकीति भी काशा पहुंचता है, इसलिये इस सर्ग का नाम 'अर्ककीर्तिसमागमसर्ग' है। अष्टादश सर्ग में प्रभात-वर्णन होने के कारण सर्ग का नाम 'प्रभात-वर्णन-सर्ग' रखा गया है। . ११. 'जयोदय' काव्य को कवि ने विविध प्रलंकारों से सुसज्जित किया है। उनके प्रिय अलंकार हैं-अनुप्रास,' यमक,२ उपमा, उत्प्रेक्षा,४ प्रपतुति,५ रूपक विरोधाभास, और चित्रालंकार । १२. जयोदय महाकाव्य में दुष्ट-निन्दा और सत्प्रशंसा यद्यपि कवि ने सोधे-सीधे नहीं की है, किन्तु काव्य के खलनायक मर्ककीति का पराभव और जयकुमार के गुरणसहित परिचय'में हो दुष्टों को निन्दा मोर सज्जनों की प्रशंसा छिपी हुई है। १३. 'जयोदय' में जयकुमार के प्रशंसात्मक परिचय में कवि ने अनेक श्लोक लिखे हैं। उन्होंने नायक का भौतिक-प्रभ्युदय दिखाने के बाद आध्यात्मिक प्रभ्युदय भी दिखा दिया है। १४. कवि ने काव्य का नामकरण इस काव्य के नायक के नामानुसार 'जयोदय' रखा है। साथ ही इस कान्य का एक मोर नाम कवि को अभीष्ट है; वह है'सुलोचना-स्वयंवर'। कवि ने इस कान्य के ये दोनों ही नाम सार्थक रखे हैं। १. जयोदय, प्रायः सभी सर्ग २. वही, २४१५५, २५।६, १४, ४६, ८२-८४ ३. वही, ६५१, २०१५, १८१३७, ६३ ४. वही, ३१५२, १०।११, १५॥५३ ५. वही, ११५२, १३३१०२, २४॥३६ ६. वही, ८।६३, २५।३० ७. बही, २८५-६५ ८. वही, प्रत्येक सगं का उपान्त्य श्लोक एवं २८७१ १. वही, ८८४, ६५ १०. वही, १२२-७६, १०४-११७ ११. वही, १-२-७६, १०४-११७ १२. वही, ८८४ १३. वही, २८६६.६०
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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