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________________ काव्यशास्त्रीय विधाएँ १२३ ८. जयोदय में पंचसन्धियों का भी निर्वाह किया गया है। जयोदय के प्रथम सर्ग में अतः वह इस काव्य की 'मुखसन्धि' माना काशीनरेश की पुत्री सुलोचना के स्वयंवर माना जा सकता है तृतीय सगं में पुन: काव्य का मुख्य उद्देश्य वैराग्य उत्पत्ति है । २ जयकुमार का परिचय दिया गया है, ' जा सकता है । काव्य ने तृतीय में का सन्देश लाता है, इस सगं को काव्य की प्रतिमुख सन्धि' क्योंकि प्रथम सर्ग में सुलोचना का भी उल्लेख प्राया है। जयकुमार मीर सुलोचना के विवाह की सूचना मिलती है। सुलोचना मोर जयकुमार के संयोग के पश्चात् जयकुमार में इस उद्देश्य का सूचक काव्य का २३व सर्ग है जिसमें जयकुमार की मूर्च्छा श्रीर पूर्वभव-मरण का वर्णन है । प्रतः यह सगं इस काव्य की 'गर्भसन्धि' के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। २४६ सगं काव्य' की 'विमर्शसन्धि' के रूप में विद्यमान है । इसमें एक देव की पत्नी विरहिणी के रूप में जयकुमार को विचलित करने प्राती है। तब श्रोता के मन में यह शंका होने लगती है कि कदाचित् जबकुमार अपना लक्ष्य प्राप्त न कर सकें। काव्य के २५ वें सर्ग में जयकुमार के वैराग्य का वर्णन है, अतः यह सगं काव्य की 'उपसंहृतिस ंधि' को सूचित करता है । " ६ 5 ८. 'जयोदय' में २८ सगँ हैं। कवि ने कुछ सर्गों में तो एक ही छन्द को पूरे सगं में प्रयुक्त करके अन्तिम श्लोकों में छन्द बदल दिया है, लेकिन धन्य सर्गों में कवि ने छन्दों के स्वतन्त्र प्रयोग किये हैं। उन्होंने विशेषरूप से उपजाति, धनुष्टप् वियोगिनी, ६ मात्रासमक, १० 'कालभारिणी," रथोद्धता, १३ द्रुतविलम्बित, " प्रादि छन्दों का प्रयोग किया है । १. जयोदय, १२ - ७६ २. बही, ३।२१-१५ ३. वही, १,७५,६९ ४. वही, २३।११-२७ वही, २४।१०४-१४७ वही, २५ सर्ग ७. वही, १२-३, ५-६, ६-१०, १२, १४, १५-१६, २३-२५ ८. वही, ७११-५४ ९. वहीं, १३-१-८१ १०. बही, १४।१-८२, ८७, १३-१४, १६ ११. बही, १२ ।१ - ८१, ८३-१०८, १२२-१३८ १२. बही, २१-१३, ११३, १२२-२२६१३६ १३१ १४०-१४१, १५४ ११. बही: २।१-८६
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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