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________________ काव्यशास्त्रीय विधाएं १२५ 'जयोदय' का तात्पर्य है-जय का उदय प्रर्वात् विजय । यह पहले ही कहा जा चुका है कि जयकुमार को पूर्ण विजय और माध्यात्मिक उन्नति रूप जीवन का मुख्य लक्ष्य हो कवि का मन्य उद्देश्य है। इस उद्देश्य का निर्वहण भी कवि ने खूब कुशलता के साथ किया है। अतः इस काव्य का 'जयोदय' नाम पूर्णरूपेण ठीक है। इम काव्य को प्रमख घटना है-जयकुमार और सुलोचना का स्वयंवर । इसी घटना के कारण ही जपक मार और प्रकीति का युद्ध होता है, और हमें जयकुमार के पराक्रम का वास्तविक ज्ञान भी हो जाता है। अतः इस काठप का दूसरा नाम 'सलोचना-स्वयंवर' भी सही है, किन्तु 'जयोदय' जैसा छोटा मोर सार्थक नहीं । वैसे दोनों ही नाम मान्य हैं। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि 'जयोदय' पूर्णरूपेण महाकाव्य की कोटि में ग्रा जाता है। काव्य-शास्त्रियों को मान्य महाकाव्य की प्राय: प्रत्येक विशेषता हमें 'जयोदय' में देखने को मिलती है। इस काव्य को पढ़कर श्रोता की बुद्धि और हृदय दोनों प्रसन्न हो सकते हैं। वीरोक्य काव्यशास्त्रियों को मान्य महाकाव्य की विशेषताओं की कसौटी में 'वीरोदय' को कसने से यह ज्ञात हो जाता है कि 'बोरोदय' भी एक महाकाव्य है। अब 'वीरोदय' का महाकाम्पत्व प्रापके सामने प्रस्तुत है :---- १. 'वीरोदय' की कथावस्तु २२ सगों में निबद्ध है। २. प्रत्येक कार्य के पूर्ण होने में कोई विघ्न-बाधा न पाये. इसलिये व्यक्ति अपनी बाधामों को दूर करने के लिये प्राय: प्रत्येक कार्य के प्रारम्भ में अपने अभीष्ट की प्रार्थना करता है । महाकवि श्री ज्ञानसागर ने भी सम्भवतः इसीलिये 'वीरोदय के प्रारम्भ में मंगलाचरण के रूप में श्रीभगवान् की स्तुति की है। मंगलाचरण का एक श्लोक प्रस्तुत है। 'चन्द्रप्रभं नौमि यदङ्गसारस्तं कौम दस्तोममरीचकार । सुखंजन: संलभते प्रणश्यत्तमस्तयाऽऽत्मीयपदं समस्य ॥" ---वीरोदय, ११ ३. भगवान् महावीर जैन धर्म के अन्तिम तीथंकर थे। भारतवर्ष में ऋषभदेव के समान ही महावीर जो की भी प्रसिद्धि है। इन्हीं वीर भगवान् के जीवन पर यह काव्य प्राधारित है। 'वीरोदय' के कथानक का स्रोत 'महापुराण' से लिया गया है। ४. इस काव्य में 'मोक्ष' रूप पुरुषार्थ की सिद्धि का स्पष्ट हो, संकेत है। कवि के कथनानुसार :
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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