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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्य-ग्रन्थों के स्रोत
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उज्जयिनी नगरी में राजा वृषभदत्त राज्य करता था; उसकी रानी का नाम था वृषभदत्ता । उसी राजा के राजश्रेष्ठी का नाम था गुणपाल | गुणपाल की गुणश्री नाम की पत्नी थी। घण्टा धीवरी ने इन्हीं दोनों की पुत्री विषा के रूप में जन्म ग्रहण किया। इसी नगर में श्रीदत्त नाम का सार्थवाह अपनी स्त्री श्रीमती के साथ रहता था । मृगसेन ने उसके पुत्र सोमदत्त के रूप में जन्म लिया । सोमदत्त जब गर्भ में था तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई। बालक के बढ़ते-बढ़ते उसका सम्पूर्ण कुल नष्ट हो गया । भूख से व्याकुल सोमदत्त एक दिन भोजन की इच्छा से गुणपाल के घर पहुँचा । श्रेष्ठी के बर्तनों में पड़ी हुई जूठन को उसने खाना प्रारम्भ कर दिया। इसी समय एक मुनि प्रपने शिष्यमुनि के साथ वहाँ पहुँचे । सोमदत्त की सुन्दर प्राकृति को देखकर छोटे मुनि ने बड़े मुनि से कहा कि यह बालक श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त होते हुए भी माता-पिता और बन्धुनों से रहित हो गया है और कटोरे में पड़ी हुई जूठन खा रहा है। उसके वचन सुनकर बड़े मुनि ने कहा कि यह बालक सेठ गुरणपाल की सम्पूर्ण सम्पत्ति का स्वामी होगा। मुनि के इस वाक्य को सुनकर गुणपाल विस्मित हो गया और मुनि के वचन की सत्यता पर विचार करने लगा । तत्पश्चात् उसने उस बालक को मारने के लिए एक चाण्डाल को बुलाया और उसे घन का प्रलोभन भी दिया। चाण्डाल ने उसकी बात सुनकर बालक को उठाया मोर नदी के किनारे गहन वन में छोड़ दिया प्रोर लोडकर उसकी मृत्यु की घोषणा कर दी। नहाकर, नदी का जल पीकर और फल खाकर वह बालक वृक्ष के नीचे सो गया ।
थोड़ी देर बाद गोविन्द ग्वाले ने वहाँ उसे सोता हुआ देखा। उस बालक को देखकर गोविन्द ने प्रसन्नतापूर्वक घर लाकर प्रपनी स्त्री धनश्री को दे दिया । धनश्री उसे अपने पुत्र के ही समान पालने लगी। धीरे-धीरे सोमदत्त युवक हुआ । एक दिन सेठ गुरणपाल वहाँ पहुँचा तो सोमदत्त को देखकर प्राश्वयंचकित हो गया । उसने गोविन्द से उसके विषय में जिज्ञासा प्रकट की । गोविन्द ने सोमदत्त की अपने पुत्र के रूप में घोषणा कर दी। तब गुरणपाल ने कहा कि प्रपने पुत्र को जरा मेरे घर भेज दीजिए । गुगपाल की बात सुनकर गोविन्द ने अपने पुत्र को सुसज्जित किया, तब सेठ ने उसे एक पत्र देकर विदा किया। उस पत्र में गुरणश्री के लिए प्रादेश था कि पत्रवाहक को विष दे देना ।
पत्र लेकर सोमदत्त शीघ्रता से एक उद्यान में पहुँचकर एक वृक्ष के नीचे सो गया । उसी समय वसन्तसेना नाम की वेश्या ने वहाँ प्राकर उसके गले में पड़े हुए पत्र को पढ़ा। पत्र के विषय की प्रसंगति का विचार करके उसने पत्र में सुधार कर दिया कि पत्रवाहक को अपनी पुत्री विषा दे देना । पुनः पत्र को सोमदत्त
के गले में डालकर बसन्तसेना शीघ्र हो अपने उठकर गुणपाल के घर गया और गुणपाल के
घर चली गई । सोमदत्त वहाँ से पुत्र महाबल को उसने पत्र दे