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________________ १०८ महाकवि ज्ञानसागर के काग्य-एक अध्ययन दिया। महाबल ने पत्र पढ़कर माता एवं अन्य बान्धवों से परामर्श करके शुभ दिन और शुभनक्षत्र में उन दोनों (विषा और सोमदत्त) का विवाह बड़ी धूमधाम से करने का प्रायोजन किया। वरवधू वेदी में बैठे ही थे कि गुणपाल अपने घर पहुँच गया। वर मोर वधू को देखकर क्रोष के कारण धूलिघूसरित शरीर से ही बिस्तर पर लेट गया। पिता को विस्तर पर लेटा हुमा देखकर महाबल ने निवेदन किया कि यह कार्य आपकी इच्छा से सम्पन्न किया जा रहा है, प्रतः पाप मौन क्यों है ? महाबल की बात सुनकर गुणपाल बोला कि जब तक मैं घर में नहीं . माया, तब तक तुमने विषा का विवाह कैसे निश्चित किया ? महाबल ने उत्तर दिया कि पापका पत्र पढ़कर ही मैंने यह विवाह निश्चित किया है । महाबल की बात सुनकर गुणपाल अत्यधिक दुःखी हुमा। गुणधी को प्राग्रह करने पर उसने सम्पूर्ण पूर्ववृत्तान्त सुना दिया। इसके बाद सन्ध्याकाल में धूपपुष्पादि देकर गुणपाल ने अपने जामाता सोमदत्त को नागमन्दिर भेजा। उसको पकेले जाता हुमा देखकर महाबल ने उसके हाथ से पूजा की सामग्री बलपूर्वक लेकर उसे वहीं रोक दिया; मोर स्वयं नागमन्दिर की ओर चल पड़ा। वहाँ पूजा की सामग्री लाने वाले युवक की हत्या के लिए गुणपाल ने एक चाण्डाल को नियुक्त कर दिया था। महाबल जैसे ही नागमन्दिर पहुंचा, वैसे ही चाण्डाल ने तलवार से उसकी हत्या कर दी। . गुणपाल जामाता को जीवित देखकर और पुत्र की मृत्यु का समाचार मानकर मौन और दुःखी हो गया। इसके बाद गुणपाल ने गुणश्री से शत्रुरूप जामाता को मारने का उपाय पूछा। उसके बचन सुनकर गुणश्री ने पीघ्र ही विषमय लड्डू तैयार किये । उसने अपनी पुत्री विषा को समझाया कि ये लड्डू केवल अपने पति को देना, अन्य किसी व्यक्ति को नहीं। ऐसा कहकर वह बाहर चली गई। इसके बाद ही भूख से व्याकुल सेठ गणपाल ने विषा से कहा कि राजकार्य से मुझे राजा ने बुलाया है। प्रतः जो कुछ भोजन है, वही मुझे दे दो। उसके पचन सुनकर विषा ने शीघ्र ही विषयुक्त लड्डु खाने को दे दिए । फलस्वरूप गुणपाल की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु से शोकाकुल गुणश्री ने भी उन लड्डुओं को बाकर मृत्यु को प्राप्त कर लिया। . इस घटना के बाद राजा ने सोमदत्त को पास बुलाया; अपनी पुत्री, अपना भाषा राज्य, गुणपाल का धन एवं राजश्रेष्ठी का पद उसे दे दिया। राजश्रेष्ठी ने नगर में सुखपूर्वक भोगों का अनुभव किया। ____ सुकेतु मूरि नामक मुनि को पाहार इत्यादि से सतहत करके उनसे धर्मोपदेश पूर्वजन्म के वृत्तान्त इत्यादि के विषय में सुना। तत्पश्चात् वह तपकरण करने लगा। पारों प्रकार की पारापनामों का सम्पादन करके सोमदत्त मुनि ने सर्वार्ष, सिरि को प्राप्त किया।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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