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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन (छ) 'माराधनाकथाकोश' में श्रीभूति को दिये जाने वाले दण्डों का नामोल्लेख है। जबकि श्रीसमुद्रदत्तचरित्र में इनका नामोल्लेख नहीं है। उपर्युक्त परिवर्तन के अतिरिक्त कवि ने अपने इस काम्य में दो परिवर्धन भी किए हैं, जो इस प्रकार हैं :(क) श्रीज्ञामसागर ने धनार्जन के पूर्व स्वावलम्बन सम्बन्धी कथा का वर्णन किया है, जो 'बृहत्कथाकोश' एवं 'पाराधनाकयाकोश' में नहीं मिलती। (ख) 'श्रीसमुद्रदत्तचरित' में राजा ने भद्रामित्र को राजसेठ का पद दिया है। किन्तु यह वर्णन 'बृहत्कथाकोश' में नहीं है। ___ 'दयोदयचम्पू' काव्य के कपानक का स्रोत ढूंढते समय हमें उसकी कथा दो स्थलों पर देखने को मिली है. एक तो हरिषेणाचार्यकृत 'बृहत्कथाकोश' भोर दूसरी ब्रह्मचारी श्री नेमिदत्त जी रचित 'पाराधनाकयाकोश' की 'मृगसेन धीवर की कथा' के रूप में। सर्वप्रथम 'बृहत्कथाकोश' में वर्णित कथानक का सारांश प्रस्तुत है 'अवन्ती नामक देश में शिप्रा नदी के किनारे शिशपा नामक मछुपों के ग्राम में भवदेव नामक मछुमा अपनी स्त्री भवत्री के साथ रहता था। उनके पुत्र का नाम था मृगसेन । वहीं पर सोमास नामक मछुमा और उसकी स्त्री सेना अपनी पुत्री घण्टा के साथ रहते थे। मृगसेन पौर घण्टा का विवाह हो गया। पाश्वनाथ जिनेन्द्र के मन्दिर में एक मुनि से धर्मोपदेश श्रवण करके मृगसेन ने प्रतिज्ञा की कि जल में सर्वप्रथम माने वाली मछली को वह छोड़ देगा। तत्पश्चात् कन्धों में जाल डालकर वह नदी को तरफ चला गया। वहाँ जाकर जैसे ही उसने नदी में जाल फैलाया, वैसे ही एक बड़ी मछली जाल में फंस गई। उसने उस मछली को मुक्त कर दिया; और पुनः नदी में बाल डाला, तब बार-बार वही मछली उसके जाल में फंसी। फलस्वरूप विरक्त होकर खाली जाल को कन्धे पर लटकाकर वह घर की मोर चल पड़ा। उसकी पत्नी घण्टा ने पति को खाली हाथ माता हुमा देखकर निष्ठुर वचन कहे। मृगसेन ने उसे अपनी प्रतिमा के विषय में समझाया और कहा कि एक ही मछली चार बार जाल में फंसी, इसीलिए उसे मुक्त करके खाली हाथ घर मा गया है। घण्टा ने उसके समक्ष माजीविका की समस्या प्रस्तुत की और उसे घर से बाहर निकाल दिया। घर से निकलकर वह एक सूनी धर्मशाला में पहुँचा। कुछ देर बाब निहित होने पर एक सर्प के डसने से उसकी मृत्यु हो गई। भूख से व्याकुल घण्टा धीवरी भी उसे खोजती हुई वहीं पा गई; भोर पति के द्वारा गृहीत त का अनुसरण करने की इच्छा से उसने सर्प के बिल में हाथ मल दिया। दुष्ट सर्प काटने में उसकी भी मृत्यु हो गई। १. श्रीसमुद्रदतचरित्र, दूसरा सर्ग । २. वहाँ ।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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