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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्य-ग्रन्थों के स्रोत माता उसके जैनधर्माचरण से विरोध करके मरने के बाद उसी पर्वत पर भवामक व्याघ्री के रूप में उत्पन्न हुई । एक दिन सुमित्रदत्त मुनि की वन्दना करने के लिए गया, तब उस व्याघ्रो ने उसको खा लिया । तत्पश्चात् वह राजा सिंहसेन श्रौर रामदत्ता के पुत्र सिचन्द्र के नाम से उत्पन्न हुआ । उसके भाई का नाम पूर्णचन्द्र था । एक दिन राजा सिंहसेन अपना धन देखने की इच्छा से प्रपने भण्डार में प्रविष्ट हुआ, तब पूर्व वैर के कारण गन्धन नामक सर्प (श्रीभूति के जीव) ने क्रुद्ध होकर उसे डस लिया । विप दूर करने के लिए गरुड़-मन्त्र का ज्ञाता सिंहपुर में बुलाया गया । उसने काकोदर के मन्त्रों से सब सर्पों को बुलाया और गरुड़मन्त्र की शक्ति से बास्तविक अपराधी को पहचान लिया और कहा- या तो अपना विष बापिस लो या अग्निकुण्ड में प्रवेश करो । εε इस समय सर्प को पूर्वजन्म का वृत्तान्त याद श्राया । तब राजा के प्रति अपने वर के कारण उसने अग्निकुण्ड में ही प्रवेश कर लिया; श्रौर मरकर कालवन में चमरी मृग हुमा । राजा सिंहसेन विन्ध्यवन में मदस्रावी हाथी के रूप में जन्मा । धम्मिल्ल नामक पुरोहित बन्दर हुप्रा । इसके बाद सिंहचन्द्र सिंहपुर का राजा हुमा । पोदनपुर में पूर्णचन्द्र नाम का राजा था। उनकी स्त्री का नाम हिरण्यमती या । ये ही रामदत्ता के माता-पिता थे । एक दिन भद्रबाहु नामक गुरु से धर्म के विषय में जानकर पूर्णचन्द्र श्रमण हो गए। दत्तक्षान्तिका प्रार्थिका के पास हिरण्यमतो भी प्रायिका हो गई । हिरण्यमती ने अपने पति पूर्णचन्द्र मुनि को प्रणाम करके उनसे रामदत्ता का वृत्तान्त पूछा । पूर्णचन्द्र ने अपनी पुत्री रामदत्ता और जामाता सिंहसेन का सम्पूर्ण वृत्तान्त सुना दिया । हिरण्यमती दत्तशान्तिका के साथ रामदत्ता के समीप पहुँची। रामदत्ता ने माता को दीक्षा ग्रहण किए हुए देखा, तो उसने भी प्रव्रज्या ग्रहण कर ली । सिहचन्द्र ने भी माता के संन्यास लेने पर पूर्णचन्द्र को राज्यभार देकर भद्रबाहु मुनि के समीप में तप किया और चारण मुनि बन गया । पूर्णचन्द्र राजा बनकर जिनवाक्यों से विमुख हो गया, तब रामदत्ता ने सिंहचन्द्र से पूंछा कि पूर्णचन्द्र धर्माचरण कब करेगा ? तो सिचन्द्र ने कहाइसी भरतक्षेत्र में कौशल देश में स्थित वर्धक ग्राम में मृगायण नाम का ब्राह्मण था । उसकी पत्नी का नाम मथुरा था । मृगायण ब्राह्मण मरकर साकेत नगर में राजा प्रतिबल घोर श्रीमती की पुत्री हिरण्यमतिका के रूप में उत्पन्न हुआ । उसका विवाह पोदनपुर के नरेश पूर्णचन्द्र के साथ हुआ । मथुरा ने उसकी पुत्री रामदत्ता के रूप में जन्म लिया । मृगायण ब्राह्मण को वरुणा नाम की लड़की ने तुम्हारे पुत्र पूर्णचन्द्र के रूप में जन्म लिया। मैं ही पहले जन्म में सुमित्रदत्त था। मेरे पिता सिंहसेन मरकर हाथी के रूप में जन्मे । चमरीमृग' मरकर वन में -
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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