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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्य-ग्रन्थों के स्रोत २७ प्रकट करने के बाद मनोरमा भी उसके दीक्षित होने पर प्राविका घर्म में दौक्षिता हो गई । ' 3 (श) 'सुदंसरणचरिउ' का कथानक पुनः राजा श्रेणिक के उल्लेख से समाप्त हुमा है । 'सुदर्शनोदय' के कथानक की समाप्ति सुदर्शन मुनि की मोक्षप्राप्ति के उल्लेख से हुई है। परिवर्धन उपर्युक्त परिवर्तनों के प्रतिरिक्त कवि ने 'सुदर्शनोदय' में थोड़ा सा किन्तु महत्वपूर्ण परिवर्धन भी किया है । 'सुदर्शनोदय' के स्रोत के रूप में हमने जिन छः थों का उल्लेख किया है, उनमें किसी में भी 'सहस्रदलकमलवृत्तान्त' नहीं है । यह वृत्तान्त केबल 'सुदर्शनोदय' में ही मिलता है । ४ 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' कथानक के स्रोत के रूप में 'वृहत्कथाकोश में बरिंगत 'श्रीभूतिपुरोहितकचानक' मोर 'आराधना कथाकोश' में वरिणत 'श्रीभूतेः कथा' उल्लेखनीय हैं । सर्वप्रथम 'बृहत्कथाकोश' में भाए हुए कथानक का सारांश प्रस्तुत है × × × × × जम्बूद्वीप में विद्यमान भरतक्षेत्र में स्थित सिंहपुर में सिहसेन नामक राजा राज्य करना था । उसकी पत्नी का नाम रामदत्ता था। इस राजा का श्रीभूति नाम का पुरोहित था, पुरोहित की स्त्री का नाम श्रीदत्त था । भरतक्षेत्र में ही स्थित पद्यखण्डनगर में सुमित्र नामक वैश्य अपनी स्त्री सुमित्रदत्ता के साथ रहता था, उसके पुत्र का नाम था सुमित्रदत | एक बार धनार्जन की इच्छा से वे सब सिंहपुर प्राये । वहीं श्रीभूति की सत्यवादिता के विषय में सुनकर अपने दिव्य मरिण रत्न सौंपकर घोर अपना धन किसी वैश्य के यहाँ रखकर पुनः सभी पद्मखण्डपुर लोट गये । कुछ दिनों के पश्चात् सुमित्र प्रपने पुत्र और मित्रों के साथ रत्नद्वीप गया। समुद्र में तूफान ना जाने के कारण सभी वैश्य तो मृत्यु को प्राप्त हो गए, किन्तु सुमित्रदत्त उस उपद्रव से बचकर सिंहपुर पहुँचा । अपने पिता की बार्ता उसने अपनी माता और स्त्री को सुनाई पिता को जलदान दिया; और तत्पश्चात् श्रीभूति ब्राह्मण के पास गया। थोड़ी देर रुककर उसने अपने रत्नों की पोटली मांगी। उसके वचन सुनकर वाणी को प्राडम्बरयुक्त करके श्रीभूति ने उससे कह दिया कि मैं तुम्हारे रत्नों के विषय में कुछ नहीं १. सुदर्शनोदय, ८३३-३४ २. सुदंसरणचरिउ १२७ ३. सुदर्शनोदय, १८५-६३ ४. वही. ४।१८-२२
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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