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महाकवि ज्ञानसागर के काग्य -एक अध्ययन (फ) 'सुरसणचरिउ' में वर्णित पूर्वजन्मों के प्रसंग में भील से सम्बड राजा भूमिपाल का वर्णन' 'सुदर्शनोदय' में नहीं है। (ब) सुदंसणचरिउ' में प्रभयावृतान्त के बाद सुदर्शन विमलवाहन मुनि से अपने पूर्वजन्मों के विषय में जानता है । 'सुदर्शनोदय' में यह घटना सेठ वृषभवास के दीक्षित होने के बाद की है। (म) सदसरणचरित' में राजा एवं अन्य लोगों के सदर्शन के प्राचरण से प्रभावित होकर दीक्षा ग्रहण करने का वर्णन है । पर 'सुदर्शनोदय' में इस घटना का उल्लेख नहीं है। (4) 'सुदंसरणचरिउ' के अनुसार देवदत्ता वेश्या अपने प्रयास में असफल होकर सुदर्शन को पुनः श्मशान में छोड़ पाई। पण्डिता के साथ उसके तप तब ग्रहण किया, जब सुदर्शन को कैवल्य की प्राप्ति हो गई। सुदर्शनोदय' के अनुसार सुदर्शन की दृढ़ता से प्रभावित होकर वेश्या ने अपने कुकृत्यों को निन्दा की और पण्डिता के साथ सुदर्शन से दीक्षा ग्रहण की। (य) 'सुदंसणचरिउ' के अनुसार प्रमता के भ्यन्तरी रूप से उसो व्यन्तर ने पुन: सुदर्शन की रक्षा को, जिसने राजा बारा वध करवाते समय उसकी रक्षा की थी। किन्तु 'सुदर्शनोदय' के अनुसार मदर्शन अभयमती द्वारा किये गये उपरागों को महन करते रहे। (र) 'सुदंसरण चरिउ' के अनुसार सुदर्शन के लिए इन्द्र द्वारा समवशरण मणप-निर्माण वर्णन 'सुदर्शनोदय' में नहीं है। (ल) सदसणचरिउ' में न्यन्तरी के सम्यक्त्वधारण का उल्लेख है। किन्तु 'सुवर्शनोदय' में ऐसा उल्लेख नहीं है। (व) 'सुसंसरणचरित' में वर्णन है कि मनोरमा सदर्शन के कैवल्यज्ञान की प्राप्ति के गाव मायिका बनी।' १ स दर्शनोदय' के अनुसार सुदर्शन द्वारा तपश्चरण की इम्बा १. सुदंसरणचरिउ, १०४ २. वही, १०४ ३. सुदर्शनोदय, ४१६ ४. सदसरणचरिउ, १११ ५. वही, १११११, १२२६ ६. सुदर्शनोदय, ६।३०,७४ ७. सदसणचरित, १९६१२-२२ ८. सुदर्शनोदय, ६७६-८३ १. सुदंसरणचरिउ, १२६३ १०. वही. १२।५-६ ११. वही, १२॥६