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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्यग्रभ्यों के खोत κε श्मशान में बैठे हुए मुनि को देखकर उसे अपने पूर्वजन्म की याद प्रा गई। प्रत उसने मुनिपर घोर उपवर्ग करना प्रारम्भ कर दिया। सुदर्शन मुनि पर इन बीर उपसर्गों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा । इसी समय सुदर्शन की रहने भी रक्षा करने वाला व्यन्तर वहाँ पहुँच गया । उपकार का परस्पर घोर युद्ध हुप्रा । मन्त में व्यन्तरी डरकर भाग गई। मुनिवर सुदर्शन पुनः जिनचरणों का स्मरण करने लगे । इस घटना के बाद सातवें दिन घातिया कर्मों के नष्ट हो जाने पर सुदर्शन को ज्ञान की प्राप्ति हुई । इस शुभ अवसर पर सुरेन्द्र प्रपने गजेन्द्र पर चढ़कर सुदर्शन के पास आया। उसने मुनि की स्तुति की। कुबेर ने समवसरण मण्डप की रचना की। उसके मध्य में केवजी भगवान् सुदर्शन भद्रपीठ पर प्रासीन हुए। लोगों की इच्छानुसार उन्होंने उपदेश दिये । व्यन्तरी ने मुनि की प्राज्ञा से सम्यक्त्व धारण कर लिया। पण्डिता श्रीर देवदत्ता ने भी तपश्चरण धारण कर लिया। मनोरमा ने जब सुना कि सुदर्शन को केवल्यज्ञान की प्राप्ति हो गई है, तब वह भी घर छोड़कर प्रार्थिका हो गई। प्रन्त में देवलोक को गई। सुदर्शन को पौष मास की पंचमी तिथि को सोमवार के दिन मोक्ष को प्राप्त हो गई । गौतम गणधर से यह वृत्तान्त सुनकर मगधेश्वर श्रेणिक ने भगवान् को प्रणाम किया और राजप्रसाद लोट माया ।" youtoonerate में वर्णित 'सुभगगोपालवर सुदर्शन सेठ कथा' का सारांश इस कथा में 'सुदंसणचरिउ' की कथा से केवल इतना ही अन्तर हैं कि इसमें ग्वाला रात भर मुनिराज के पास बैठकर उनकी सेवा करता रहा। शेष कथा सुसरणचरिउ' के ही समान है । 3 ब्रह्मचारी नेमिदस विरचित 'प्राराधना कथाकोश' में वर्णित 'पंचनमस्कारनम प्रभाव कमा इस कथा में सुकान्त जन्म वृतान्त प्रोर कपिल ब्राह्मण एवं उसकी पत्नी कपिला का वृत्तान्त नहीं है । पूर्वग्रन्थों में द्वारपालों को वश में करने के लिए सात पुतलों का वर्णन है । परन्तु इसमें एक ही पुतले का उल्लेख प्राया है । शेषकवा 'बृहत्कथाकोश' की कथा के समान है। भट्टारक सकमकीत विरचित 'श्री सुदर्शन चरित' इसमें सेठ बृषभदास एवं बैठ सागरबस द्वारा सुदर्शन एवं मनोरमा के १. प्रा० नयनंदि विरचित, 'सुदंसणचरित' सन्धि १ से १२ तक । २. रामचन्द्र मुमुक्षु विरचित, 'पुण्यासवकथाकोश', २।१७वीं कथा । ३. ब्रह्मचारी नेमिक्स विरचित, धाराधना कथाकोश, १२१,
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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