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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक अध्ययन
तत्पश्चात् सुदर्शन अपने पुत्र को अपना पद देकर बहुत से लोगों के साथ जिनमन्दिर गया । वहाँ उसने जिनेन्द्रदेव की स्तुति की। इसी बीच उसने मन्दिर में वैठे हुये विमलवाहन मुनि को देखा। उसने मुनि को प्रणाम करके उनसे अपने अन्य जन्मों के विषय में पूछा। मुनिराज ने बताया :
विन्ध्य देश में स्थित कोसल प्रदेश की प्रजा को त्रस्त करने वाला व्याघ्र नाम का भील विन्ध्य पर्वत पर अपनी स्त्री कुरंगिणी के साथ रहता था । इस भील नें कोसल के राजा के सेनापति को भी पराजित किया । किन्तु राजकुमार लोकपाल ने उसका वध कर दिया। मरकर भील वत्सदेश में एक ग्वाले का कुत्ता हुप्रा । कुरंगिणी मरकर काशीदेश में भैंस हुई। कुत्ता मरकर चंगपुरी के सिंह की प्रिय सिही सा पुत्र हुप्रा । यही मरकर सुभग ग्वाला हुआ। सुभगग्वाला नमस्कार मंत्र के परिणाम स्वरूप सेठ सुदर्शन हुप्रा । भैंस मरकर चंपानगर के श्यामल नामक धोबी की यशोमती नामक स्त्री से बरिसनी नाम की पुत्री हुई। विधवा होकर उसने व्रत धारण कर लिया । वही मरकर सुदर्शन की प्रिय स्त्री मनोरमा हुई। मुनि ने सुदर्शन को बताया कि वह अनन्तचतुष्टय एवं मोक्ष प्राप्त करेगा घोर मनोरमा देव मनुष्यों के सुख भोगकर मोक्ष प्राप्त करेगी। मुनि ने उक्त वृत्तान्त सुनकर सुदर्शन को धर्मोपदेश दिया ।
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सुदर्शन ने मुनि के बचन सुनकर तपश्चरण प्रारम्भ कर दिया । अपनी स्त्री और सुदर्शन के परस्पर विरोधी प्राचरण को देखकर विरक्त राजा ने अपना राज्य पुत्र को सौंप दिया और मुनीन्द्र को नमस्कार करके उसने दिगम्बर मुनि का वेश धारण कर लिया । उसकी सभी रानियों ने भी दीक्षा धारण कर ली। सुदर्शन ने इन सभी त्यागी जनों के साथ नगर में भिक्षाचरण किया। तत्पश्चात् जिनमम्बिर जाकर अपने गुरु की प्राज्ञानुसार योग्य प्राचरण प्रारम्भ कर दिया ।
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उधर पण्डिता ने देवदत्ता वेश्या को सुदर्शन से सम्बन्धित सारा वृत्तान्त सुनाया । देवदत्ता ने कपिला घोर प्रभया के वृत्तान्त जानकर दोनों की हंसी उड़ाई और स्वयं सुदर्शन को तपोभ्रष्ट करने की प्रतिज्ञा की ।
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इसी बीच घूमते हुए सुदर्शन पाटलिपुत्र पहुँचे । चबलगृह पर चढ़ी हुई पण्डित ने उन्हें देखा तो देवदत्ता को भी उनके दर्शन करा दिये । देवदत्ता की दासी ने उसकी प्राज्ञा से सुदर्शन को प्रासाद के नीचे ठहरा दिया। निर्लिप्त सुदर्शन के पास जाकर देवदता ने उन्हें सुखोपभोग के लिए ग्रामन्त्रित किया । उसने तीस दिन तक सुदर्शन मुनि के प्रति तरह-तरह की काम चेष्टाएं कीं। अन्त में निराश होकर मुनि को श्मशान में जाकर छोड़ दिया। मुनि इन सब क्रियाधों के प्रति तटस्थ ही रहे। सुदर्शन मुनि तप कर ही रहे थे कि बिहार की इच्छा से निकली हुई एक व्यन्तरी का विमान उनके ऊक्र स्थित हो गया । फलस्वरूप वह बहुत क्रुद्ध हुई ।