________________
महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्य-ग्रन्थों के त्रांत
रानी भयाने सुदर्शन के रूप पर मोहित होकर अनेक मधुर बचन कहे; भांति-भांति की कामवेगवों में मंलग्न रही । अन्त में क्रुद्ध होकर सुदर्शन को फटकारा । पुनः प्रभया ने सुदर्शन को धमकी दी। जब सुदर्शन के मन में कोई भी अन्तर नहीं पाया, वह जरा भी व्याकुल नहीं हुपा, तब रानी बहुत व्याकुल हो गई। मुदर्शन को उठाकर छोड़ने के लिए जैसे ही उसने कदम बढ़ाये कि प्रातःकाल हो गया। उसने सुदर्शन को पुनः विस्तर पर डाल दिया। अपने शरीर पर नखों से प्रहार किया और छाती पीटकर कहने लगी कि इस बनिये ने मेरे सुन्दर अंगों को नोच डाला।
८७
राती की पुकार सुनकर प्रनेक वीरपुरुष धनुष बाण इत्यादि लेकर दौड़ पड़े । राजा को जैसे ही यह समाचार ज्ञात हुम्रा, उसने अपने सेवकों को आज्ञा दी कि जाकर रानो की रक्षा करो, परपुरुष को पकड़कर शीघ्र ही मार डालो । राजा के वचन सुनकर मदोन्मत्त सेवकों ने सुदर्शन को घेर लिया ।
यह समाचार जानकर सुदर्शन की पत्नी मनोरमा विलाप करती हुई उसी स्थल पर पहुंच गई । वह अपने अनुभूत सुखों का स्मरण करके अत्यन्त व्याकुल हो रही थी । किन्तु सुदर्शन का अपने समक्ष होने वाली घटनाओं से कोई प्रयोजन न था। उसके मन में वैराग्य को भावना प्रबलतम रूप धारण कर रही थी ।
इसी समय भटों ने सुदर्शन पर तलवार के प्रहार करने शुरू कर दिये । इतने में ही एक व्यन्तर ने प्राकर सभी भटों को रोक दिया और तलवारों के प्रहारों को मालायों के रूप में परिणत कर दिया । देवगणों ने प्राकाश से युष्पवृष्टि
की ।
राजा ने उक्त समाचार सुनकर मोर भटों को भेजा । व्यन्तर ने उन भटों को भी भयभीत कर दिया। अन्त में क्रुद्ध होकर राजा स्वयं रणभूमि में पहुँच गया । राजा की एवं व्यन्तर की सेनाओं में घोर संग्राम हुप्रा । व्यन्तर की माया से भयभीत होकर राजा भागने लगा । तब व्यन्तर ने उसका पीछा किया और कहा कि तेरी रक्षा केबल सुदर्शन कर सकता है । व्यन्तर के वचन सुनकर राजा सुदर्शन की शरण में गया और प्राणों की याचना करने लगा । सुदर्शन ने राजा की रक्षा की । व्यन्तर ने सभी सैनिकों को जीवित कर दिया प्रौर राजा को रानी का सारा वृत्तान्त सुनाया। तब राजा भक्तिपूर्वक सुदर्शन से क्षमायाचना करने लगा। सुदर्शन से क्षमा प्राप्त करके राजा ने सुदर्शन को प्राधा राज्य देना चाहा, किन्तु सुदर्शन ने राजा की इस प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया ।
राजा के बहुत रोकने पर भी सुदर्शन ने दंगम्बरी दीक्षा धारण की इच्छा प्रकट की । सुदर्शन का निश्चय दृढ़ जानकर राजा ने उसकी स्तुति की। राजा के नगर मे पहुंचने तक प्रभया ने रस्सी का फंदा बनाकर वृक्ष पर लटककर प्रात्मघात कर लिया। मरकर वह पाटलिपुत्र नगर में व्यन्तरी हुई। पण्डिता भी डरकर पाटलिपुत्र की भोर भागी; मोर वहाँ देवदत्ता गणिका के यहाँ रहने लगी ।