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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य--एक अध्ययन कहा। मखी सुदन के पास गई और मित्र के मस्तक में वेदना के बहाने से शीघ्र ही उपका घर न पाई । जब उसने अपने मित्र कविय में पूछ तब कपिला ने उसका हाथ पकड़कर रतिसुख की कामना की। सुदर्शन ने कहा मैं तो नपुंसक हूँ । यह सुनते ही विरक्त होकर कपिला ने उसका हाथ छोड़ दिया। __ कुछ दिनों पश्चात् बसन्त ऋतु के प्रागमन पर बनपाल ने राजा को उपवनमें पाने का निमन्त्रण दिया। राज रानी, मुदर्शन-मनोरमा और कपिल एवं कपिला उद्यान-बिहार के ! नए ग? । मनारमा का दखकर रानी ने उसकी प्रशंमा को। रानी के वचन सुनकर कपिलान बताया कि मनोरमा पुत्रवती कैसे हो सकती है ? क्योंकि इसके पति की नपुंसकता के विषय में मैंने किसी से सुना है। तब रानी ने चतुराई में कपिला का सारा वृत्तान जान लिया। उसन कपिला से कह दिया कि वह ठगी गई है। तब कपिला न रानी से कहा कि मैं तो माधारण ब्राह्मणी हूँ और तुम राबरानी हो, मत. तुम ही उस मुदर्शन का चित्त चंवल करके दिखा दो। रानी प्रभया ने कपिला के वचन सुनकर प्रतिज्ञा की कि यदि मैं सुदर्शन के साथ रमण करने में असमर्थ हो जाऊंगा ता गल में फांसी लगाकर आत्मघात कर लूगो । उद्यान क्रीड़ा प्रोर जलक्रीड़ा के बाद रानी न गगार किया। प्रभयादेवी राजमहल में प्राई और शय्या पर लेट गई । उसकी पंडिता धाय ने उसके अनमनेपन का कारण पूछा। रानी ने उसके पाग्रह पर सम्पूर्ण वृत्तान्त मौर पपनी प्रतिज्ञा के विषय में बता दिया। पण्डिता ने रानी को समझाया, उसे हितोपदेश दिया, लेकिन अपनी प्रतिज्ञा की बात बताकर रानी अपने निश्चय पर रद रहो । अन्त में पण्डिता ने रानी की बात मान ली। . (इसके आगे पुतलों द्वारा द्वारपालों को वश में करने का वृत्तान्त 'बृहत्कथाकोश' के समान है।) अष्टमी तिथि के दिन सुदर्शन, मुनि को प्रणाम करके उपवास लेकर श्मशान की मोर चल पड़ा । उसके मार्ग में अनेक अपशकुन माये । लेकिन सभी बाधामों की चिन्ता किए बिना ही भयंकर श्मशान में प्रविष्ट हुमा । वहाँ पहुँचकर जिनेन्द्रदेव का स्मरण करते हुए वह कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ा हो गया। रात्रि के समय पण्डिता दासी वहाँ पहुंची। उसने सुदर्शन को प्रणाम किया और रानी प्रभया के जीवन की रक्षा करने की प्रार्थना करने लगी। पण्डिता के वचनों का सुदर्शन पर कोई प्रभाव नही पड़ा । पण्डिता ने यह समस्त वृत्तान्त रानी प्रभया को सुना दिया। रानी ने पण्डिता को पुन: भेजा और कहा कि गुदर्शन को जबर्दस्ती उटाकर ले मा। पुतले के बहाने से सबको जिज्ञासा शान्त करती हुई पण्डिता धाय न सुदर्शन को लेकर महल में प्रवेश किया। रानी के प्रसाद न पहुंचकर पण्डिता ने सुदर्शन को गड्ढे में डाल दिया। यह सब स्थिति देखकर सुदर्शन किंकर्तव्यमूढ़ हो गया। उसने प्रतिज्ञा की कि यदि इस वृत्तान्त के बाद मेरा जीवन शेष रहा तो मैं तपश्चरण करूंगा।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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