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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्य-प्रन्यों के स्त्रोत पाकर वह सो गया। मुनि के गुणों पर प्राकृष्ट होकर वह प्रात:काल पुनः भैसों को लेकर उपी दिशा की ओर जा पड़ा। हाँ मुनि की 'नमोऽहने मन्त्रोच्चारण पूर्वक प्राकाशगामिनी विधा को देख कर स्वयं भी उसे प्राप्त करने की इच्छा करने लगा। सेठ ने उसे जिननाम लेने को मना किया। तब सेठ दो मुनि का वृत्तान्त सुनाकर उसने जिननाम छोड़ने में पपी समर्थ प्रकट की। सुग गोप की बात सुनकर पेठ ने उसे जियारे को पमपि दी। एक दिन मेठ की भै गंगा में उतर कर दूसरी पोर एक खेत में पहुँच गई। यह देखकर ग्वाला उन्हें लाने के गिर जब वेगपूर्वक नदी में कूदा तो एक लकड़ी की नोक के शिर में चुभ जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। बराश्चात् ग्वाले का जीव सेठ को पत्नी जिमदासी के गर्भ में प्रा गया। गर्भावस्था के नौ महीने बीतने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम सुदर्शन रखा गया । मुदर्शन कमशः सब विद्यानों और कलामों को प्राप्त करता हुमा युवावस्था में पच गया। __चम्पापुर में ही सागरसेन नामक सेठ रहता था। उसकी स्त्री सागरसेना से मनोरमा नाम की पुत्री ने जन्म लिया। इसी मनोरमा से मृदर्शन का विवाह हो गया । मनोरमा ने सुकान्त नामक पुत्र को जन्म दिया। ऋषभदास ने सुदर्शन को सेठ का पद देकर स्वयं समाविगुप्त मुनि के. समीप दीक्षा धारण कर ली। सुदर्शन का मित्र कपिल ब्राह्मण राजा का पुरोहित था। इसकी कपिला नाम की स्त्री सुदर्शन के गुणों पर प्रासबन हो गई। एक दिन किसी दूती के द्वारा संदेश को पहुँचाकर उसने सुदर्शन को अपने पास बुलवाया। उसके घर पाकर सुदर्शन ने कपिल के विषय में पूछा। तव कपिला ने कहा कि वह अन्दर सो रहे हैं, तुम शीघ्र जात्रो। अन्दर जाकर, अपने मित्र को न पाकर सुदर्शन ने पुनः कपिल के विषय में पूछा। तब कपिला ने पुनः कहा कि वह घर में नहीं है और यदि तुम मेरा इच्छित कार्य नहीं करोगे तो मैं तुम्हारा वष करवा दूंगी। कपिला के निन्दित वचन मुनकर एवं बेष्टाएं देखकर सुदर्शन ने अपने को पौरुषहीन बता दिया । यह सुनकर कपिला ने विरक्त होकर उसे विदा कर दिया। एकदिन राजा दन्तिवाहन कपिल मोर सदर्शन के साथ उपवन में बिहार करने को गया। रानी अभया, कपिला पोर मनोरमा भी शिविका में बैठकर पन जाने के लिए निकलीं। मार्ग में प्रभया ने कगिला से पूछा कि पुत्रादि से युक्त यह किसकी स्त्री है? कपिसा ने उत्तर दिया कि यह सुदर्शन की भार्या है। कपिला के वचन सुनकर रानी मे पुषन्ती मनोरमा की प्रशंसा की। रानी के वचन सुनकर कपिलासकर बोली कि युवतियां तो कौशल से पुत्रों को उत्पन्न करती हैं। रानी ने मनोरमा के पातिव्रत्य की बात कहकर उसकी इस कठोर बात को कहने का
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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