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________________ ७८ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन का वर्णन कर दिया है । किन्तु 'वीरोदय' में रानी प्रियकारिणी द्वारा देखे गये स्वप्नों का विस्तार से वर्णन है। (ज) 'महापुराण' में जिस तिथि को रानी ने स्वप्न देखे, उसका भी उल्लेख 'वीरोदय' में नहीं है । (झ) 'महापुराण' में वर्णन मिलता है कि अभिषेक के समय इन्द्र ने भगवान् को वीर पोर वर्धमान ये दो नाम दिये । 'वीरोदय' में केवल 'वीर' नाम का ही उच्चारण इन्द्र द्वारा किया गया है । ५ वर्धनान नाम सिद्धार्थ ने ही दिया। (ब) 'महापुराण' में भगवान् की आयु और लम्बाई का उल्लेख है, 'वरोदय' में इस बात का कोई संकेत नहीं किया गया है। (ट) संजय मौर विजय नाम के दो चारण मुनियों ने भगवान् का नाम 'सन्मति' रखा, 'महापुराण' में उल्लिखित इस घटना का उल्लेख 'वीरोदय' में नहीं मिलता। (ठ) संगम देव ने सर्प का रूप धारण करके भगवान् के धर्य की परीक्षा ली, प्रौर तत्पश्चात् भगवान् का नाम 'महावीर' रखा, 'महापुराण' में वरिणत इस कथा का भी वर्णन 'वोरोनय' में नहीं है। (ड) जब भगवान् को प्रात्मज्ञान हुप्रा और पूर्वजन्मों का स्मरण हुमा, तब उनकी अवस्था तीस वर्ष की थी,१० 'महापुराण' में उक्त बात का संकेत 'वीरोदय' में नहीं मिलता। .. (ढ) मनःपर्ययज्ञान प्राप्त करने से पूर्व भगवान् चन्द्रप्रभा नाम की पालको पर सवार हुए। उस पालकी को पृथ्वी के राजाओं ने, फिर विद्याधर राजाओं ने, और फिर इन्द्र ने उठाया। षण्ड-वन में पचकर भगवान् पालकी से उतर गये, मोर एक शिला पर बैठ गये। उनके द्वारा उखाड़े हुए केसों और वस्त्राभूषणों को उठाकर इन्द्र ने क्षीरसागर में विसजित कर दिया । १ १ 'महापुराण' के इस वर्णन का 'वीरोदय' में प्रभाव है । १. महापुराण (प्रादिपुराण, भाग-२), १२।१०२-१२० २. वीरोदय, ४२७।६१ ३. महापुराण (उत्तरपुराण), ७४।२५३ ४. वही, ७४१२७६ ५. वीरोदय, ७।३१ ६. वही, ८६ ७. महापुराण (उत्तरपुराण), ७४।२७६-२८१ ८. वही, ७४।२८२-२८३ ६. वही, ७४१२८७-२६५ १०. वही, ७४।२६६-२६७ ११. वही, ७४।३०५-३०६
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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