SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन संयम धारण किया। गौतम इन्द्रभूति भगवान् का प्रथम गणधर बना। उसके बाद वायुभूति, अग्निभूति, सुधर्म इत्यादि दश गणधर भोर हुए। भगवान् के समीप तीन सो ग्यारह अंग, चौदह पूर्वो के धारक, नौ हजार-नो सो संयम को धारण करने वाले शिक्षक, एक हजार तीन सो अवधिज्ञानी, सात सौ केवलज्ञानी परमेष्ठी, नौ सौ विक्रिया ऋद्धि के धारक, पांच सौ मनःपर्ययज्ञानी, चन्दनादि छत्तीस हजार प्रायिकायें, एक लाख श्रावक, तीन लाख श्राविकायें. अनेक देव-देवियां और तिर्यञ्च थे। भगवान् का उपदेश सुनकर अनेक लोग लाभान्वित हुए। धर्म का उपदेश देते हुए भगवान् राजगृह पहुँचे और वहां विपुलाचल पर स्थित हो गए। राजगृह का राजा श्रेणिक मौर उनका पुत्र अभयकुमार भगवान के दर्शनों के लिए गए। राजा पौर राजकुमार ने गणधर स्वामी से अपने पूर्वजन्मों के विषय में सुना; मोर अन्य केवली पोर माथिकामों इत्यादि के वृत्तान्त भी सने । राजा श्रेणिक को इन्द्रभूति गणधर ने भगवान का अग्रिम कार्यक्रम बताया कि भनेक देशों में विहार करते हुए भगवान् अन्त में पावापुर जायेंगे, वहां के मनोहर नामक बन में अनेक सरोवरों के बीच मरिणमयी शिला पर विराजमान होंगे। दो दिन तक यहां स्थित रहकर कात्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन रात्रि के अन्तिम समय में शुक्लध्यान करेंगे। फिर एक हजार मुनियों के साथ मोक्षपद प्राप्त करेंगे । इन्द्र पाकर भग्नीन्द्र कुमार के मुकुट से प्रज्वलित होने वाली अग्नि की शिखा पर भगवान् का शरीर रखेंगे; उनकी पूजा करेंगे। इस प्रकार भगवान् निर्माण को प्राप्त करेंगे। भगवान् के निर्वाण के बाद गौतम इन्द्रभूति को कंवल्यज्ञान की प्राप्ति होगी। गौतम इन्द्रभूति के बाद सुधर्म गणधर कैवल्य ज्ञान प्राप्त करेंगे । जम्बूस्वामी पन्तिम केवली होंगे। इसके बाद नन्दी मुनि, भेष्ठो धनमित्र, अपराजित, गोवर्धन पौर भद्रबाह मुनि भूतकेवली होंगे । इसके बाद विशाखार्य, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नागसेन, सिद्धार्थ, तिषेण, विजय, बुद्धिल, गंगदेव मोर बुद्धिमान् धर्मसेन जनधर्म के अनुयायी होंगे । नक्षत्र, जयपाल, पाण्ड, ध्रुवसेन मोर कंसायं ग्यारह मंगों को जानने वाले होंगे । सुभद्र, यशोभद्र, प्रकृष्ट, बुद्धिमान्, यशोबाहु मोर चोथे लोहाचार्य पार पाचारांगों के ज्ञाता होंगे।' (यह कथा यहीं समाप्त हो जाती है) (च) मूलकथा में परिवर्तन और परिवर्धन महाकवि श्रीज्ञानसागर ने महापुराण में वर्णित महावीर की कथा में ही परिवर्तन नहीं किया है अपितु उसके क्रम में भी परिवर्तन किया है। उनके द्वारा किए गए परिवर्तन इस प्रकार हैं: (क) 'महापुराण' में महावीर की कथा का प्रारम्भ उनके पूर्वजन्मों के १. गुणभद्राचार्य विरचित महापुराण (उत्तरपुराण), पर्व ७४ से ७६ तक ।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy