SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्य ग्रन्थों के स्रोत - ७५ ने फिर विद्याधर राजापों ने और फिर इन्द्रों ने उठाया। षण्ड वन में पहुंचकर भगवान् पालकी से उतर गा और शिला पर बैठ गए। मार्गशीर्ष की कृष्णपक्ष की दशमी तिथि को उन्होंने अपने बस्त्राभूषण त्यागकर संयम धारण कर लिया। इन्द्र ने भगवान् के वस्त्राभूषण और केशों को उठा लिया। उसने देवगणों के साथ जाकर क्षीरसागर में उन वस्तुमों को विसर्जित कर दिया। इसी समय भगवान् को मनः पर्यय ज्ञान की प्राप्ति हुई। देवगण उनकी स्तुति करते हुये अपने-अपने स्थानों को चले गये। व्रत को पारणा के लिए भगवान कूल ग्राम पहुंचे। वहां पर राज्य करने वाले कूल नामक राजा ने उनके दर्शन किये; उनकी तीन प्रदक्षिणा करके उन्हें बार-बार प्रणाम किया। उत्तम प्रासन पर बिठाकर उसने भगवान् को खीर का माहार समर्पित किया। इसके बाद एकान्त में तपश्चरण की इच्छा से भगवान् किसी तपोवन में पहुंचे और दशा प्रकार के घHध्यान के चिन्तन में लीन हो गये । एक दिन उज्जयिनी नगरी के प्रति मुक्तक श्मशान में प्रतिमायोग में स्थित भगवान् महावीर के धर्य की महादेव रुद्र ने परीक्षा लेनी चाही। उसने भगवान् को विचलित करने के लिए अनेक भयंकर कर्म किये. किन्तु अपनी चेष्टा में असफल होकर उसने भगवान् के महति मौर महाबीर दो नाम रखे; मोर उनकी स्तुति करके चला गया। राजा चेटक की पुत्री चन्दना को किसी विद्याधर ने अपनी स्त्री के भय से महाटवी में छोड़ दिया। वहाँ किसी भील ने उस कन्या को उठाकर वृषभदत्त सेठ को दे दिया। सेठ की शंकालु स्त्री सुभद्रा ने चन्दना पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिये । भगवान महावीर के दर्शनों से उसके बन्धन समाप्त हो गए। उसने भगवान् का स्वागत करके उन्हें प्राहार दिया, फलस्वरूप वह अपने सम्बन्धियों के पास पहुँच गई। छमस्थ अवस्था के बारह वर्ष व्यतीत करने के बाद जम्भिक ग्राम के ऋजुकूला नदी के तटवर्ती मनोहर नामक वन के मध्य में रत्नमयी शिला पर बैठकर भगवान् प्रतिमायोग में स्थित हो गये। वैशाख शुक्ला दशमी के दिन बह क्षपणक श्रेणी पर प्रारूढ़ हुए। शुक्लध्यान के द्वारा पातिया कर्मों को नष्ट करके उन्होंने कैवल्यज्ञान प्राप्त कर लिया। इसी बीच सौधर्मेन्द्र ने देवगरणों के साथ माकर उनकी पूजा की। समवशरण की रचना के पश्चात् भगवान् परमेष्ठी और परमात्मा पदों से सुशोभित हुए। ___ इस समय इन्द्र की प्रेरणा से गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति ब्राह्मण भगवान् के पास प्राया। भगवान् का उपदेश सुनकर वह उनका शिष्य बन गया । सौधर्मेन्द्र ने उसकी पूजा की । इन्द्रभूति ने पांच सौ ब्राह्मणों के साथ भगवान् को नमस्कार करके
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy