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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक प्रध्ययन जयोदय महाकाव्य की कथा की तुलना जब हम 'महापुराण' में वरिणत जयकुमार की कथा से करते हैं तो ज्ञात होता है कि महाकवि ने 'जयोदय' के कथानक में परिवर्तन तो किए हैं पर परिवर्धन कोई नहीं किया है । ७४ (ङ) वीरोदय महाकाव्य के कथानक का स्रोत 'वोvier' महाकाव्य के कथानक का स्रोत महापुराण का तृतीय भाग उतरपुराण है, जिसमें पर्व ७४ से ७६ तक भगवान् महावीर की कथा बड़े विस्तार से बरित है। इस कथा का सारांश इस प्रकार है : विदेह क्षेत्र में सीता नदी के किनारे पर स्थित पुष्कलावती नाम के देश की पुण्डरीकणी नगरी में मधु नामक वन है । उस वन में पुरुरवा नाम का भीलराज अपनी स्त्री कालिका के साथ रहता था । इस भील ने क्रमशः सोधर्म स्वर्ग के देव श्री ऋषभदेव के पौत्र मरीचि के रूप में जन्म लिया। यह प्रपने बत्तीसवें जन्म में प्रत स्वर्ग में बाईस सागर की प्रायु वाला श्रेष्ठ इन्द्र हुम्रा । विदेह देश में स्थित कुण्डनपुर में राजा सिद्धार्थ का राज्य था; उनकी रानी प्रियकारिणी ने भाषाढ़ शुक्ल षष्ठी के दिन रात्रि के अन्तिम प्रहर में सोलह स्वप्न देखे; साथ ही मुख में प्रवेश करते हुए एक अन्य हाथी को भी देखा । प्रातः काल स्नान करने के बाद स्वप्नों का फल जानकर वह प्रत्यन्त सन्तुष्ट हो गई । इसी बीच - सभी देवगणों ने रानी का अभिषेक किया; प्रोर देवी-देवों को उसकी सेवा में नियुक्त किया । चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन रानी प्रियकारिणी ने प्रच्युतेन्द्र नाम के कुलभूषण पुत्र को जन्म दिया । प्रियकारिणी के पुत्र को सौधर्मेन्द्र ने स्वर्ग से श्राकर ऐरावत हाथी पर चढ़ाया; मोर सुमेरु पर्वत पर ले जाकर उसका अभिषेक किया; स्तुति की; और उसे उसने वीर और वर्धमान, दो नाम भी दिये । तत्पश्चात् बालक को उसके माता-पिता को दे दिया; श्रीवर्धमान को प्रणाम करके देवगरणों सहित इन्द्र ने स्वर्ग को प्रस्थान किया । श्रीवर्धमान की प्रायु बहत्तर वर्ष थी; मौर वह सात हाथ ऊँचे थे । संजय और विजय नाम के दो चारण मुनियों ने उनका दर्शन करके उनका नाम सन्मति रखा । एक बार इन्द्र की सभा में भगवान् की शूरवीरता की प्रशंसा हो रही थी, तब संगम नामक देव ने सर्प का रूप धारण करके श्रीवर्धन की परीक्षा लेनी चाही । सर्प को देखकर वर्धमान के साथ खेलने वाले बालक डर कर भाग गये, किन्तु वर्धमान ने निर्भय होकर उस सर्प पर चढ़कर क्रीड़ा की । कुमार की क्रीड़ा से प्रसन्न होकर संगम ने श्रीवर्धमान की स्तुति करके उनका नाम 'महावीर' रख दिया । जब भगवान् तीस वर्ष की अवस्था पार कर चुके तव उन्हें प्रात्मज्ञान हुआ; और सभी पूर्वजन्मों का स्मरण हो गया। इस समय देवगरणों ने उनकी स्तुति की। भगवान् चन्द्रप्रभा नाम की पालकी पर सवार हुए। उस पालकी को पृथ्वी के राजाओं
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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