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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन
में प्रवित हुआ । अन्य राजा सलोचना को न पाकर निराश हो गए (तंतालिसा पर्व यहाँ समाप्त हो जाता है ।) ।
जयकुमार के धभव को सहने में असमर्थ दुर्मर्षण नामक अकंकीति के सेवक ने राजामों के सम्मुख राजा अकम्पन के विरुद्ध वचन कहे। उसने अपने स्वामी प्रकीर्ति को भी उत्तेजित किया। सेवक के वचनों को सुनकर भकंकीर्ति क्रुद्ध हो गया। उसने जयकुमार के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। अनेक दुष्ट राजा उसके इस दुष्कर्म में सहायक हो गए।
प्रकीति को उत्तेजित देखकर उसके मन्त्री प्रनवद्यमति ने उसे समझाया कि प्रापके पिता सम्राट नाथवेश में उत्पन्न राजा प्रकम्पन को अपने पिता ऋषभदेव के समान ही पूज्य समझते हैं; और सोमवंश में उत्पन्न जयकुमार प्रापके पिता के प्रोष्ठ सेनापति हैं । अतः इस निष्पक्ष स्वयंवर-विधि से प्राप्त जयकुमार के प्रभ्युदय से प्रापको ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
मंत्री के वचनों का प्रकीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, इसके विपरीत जयकुमार का सुलोचना द्वारा वरण का कार्यक्रम भी पूर्वनिश्चित था, ऐसा कहते हुये उसने सोमवंश और नाथवंश के प्रति और भी अपशब्द कहे । फिर अपने सेनापति को बुलाकर युद्ध का डंका बजवा दिया। अपनी सेनासहित मर्ककोति विजयघोष हाथो पर प्रारूढ़ होकर राजा प्रकम्पन के नगर की मोर चला। राजा प्रकम्पन इस वृत्तान्त को जानकर बहुत व्याकुल हो गये। मन्त्रियों और जयकुमार से परामर्श करके अर्ककीर्ति के पास एक शीघ्रगामी दूत भेज दिया। दूत ने अपने वचनों का अर्ककीर्ति पर कोई प्रभाव पड़ता हुमा न देखकर राजा भकम्पन के पास प्राकर सम्पूर्ण वृत्तान्त स ना दिया। दूत के वचनों को स नकर राजा अकम्पन मूच्छित हो गये।
____ जयकुमार ने राजा को प्राश्वस्त करते हुए सुलोचना की रक्षा करने का निवेदन किया और अर्ककीति को शखला से बांधकर लाने का वचन दिया। मेघघोषा नाम को भेरी बजवायी। जयकुमार सेना तैयार करके अपने छोटे भाइयों के साथ, बिजयार्ध नामक हाथी पर मारूढ़ होकर चले। राजा प्रकम्पन भी अपनी पुत्री स लोचना को धर्य बँधाकर अपने पुत्रों और सेना के साथ निकले। कुछ अन्य राजा भी राजकुमार की ओर से युद्ध करने के लिए तैयार हो गये। जयकुमार ने युद्ध के लिए मकरव्यूह की और अकंकीति ने चक्रव्यूह की रचना की। दोनों ने हाथी, घोड़े और रथ पर सवार होकर बाणों और तलवारों से युद्ध किया। दूसरे दिन मागकमार से प्राप्त नागपाश और प्रद्धचन्द्र नामक बाण की सहायता से जयकुमार ने प्रकीर्ति को शस्त्ररहित करके पकड़ लिया। प्रकीर्ति को अपने रब में डालकर एक हाथी पर चढ़कर जयकुमार ने अन्य शत्रु विद्याधर राजानों को भी