SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्य-प्रग्यों के स्रोत सर्वगुणसम्पन्ना और जैनधर्म में प्रास्था रखने वाली सुलोचना फाल्गुन मास को प्रष्टाह्निका तिथि के दिन जिनेन्द्र भगवान् की अष्टाह्निकी पूजा करके अपने पिता को पूजा के अवशिष्ट प्रक्षत देने के लिए गई । राजा अकम्पन ने उससे वे प्रक्षत लिए पोर पारणा करने के लिए मादेश दिया। अपनी पुत्री सुलोचना को पूर्ण युवती देखकर राजा को उसके विवाह की चिन्ता हुई। इस सम्बन्ध में उसने अपने मन्त्रियों से परामर्श किया । सुमति नाम के मंत्री ने निष्पक्षता की दृष्टि से स्वयंवर विधि को अपनाने का परामर्श दिया। समति की बात सबने स्वीकार कर ली। मन्त्रियों को विदा करके राना ने अपने पारिवारिक जनों से परामर्श किया। इसके बाद अपने दूतों को भेजकर उसने अनेक राजामों को प्रामन्त्रित किया। इसी बीच राजा के पूर्वजन्म का भाई विचित्राङ्गद नाम का देव सौधर्म स्वर्ग से वहां पाया। राजा की प्राज्ञा से उसने स्वयंवर समारोह के सम्पादन के लिए एक श्रेष्ठ राजभवन का निर्माण किया। राजा के द्वारा भेजे हुए दूतों ने जब राजामों को स लोचना-स्वयंवर का समाचार स नाया तो बहुत से राजा वाराणसी पहुंच गये । राजा प्रकम्पन ने उन सभी राजामों का स्वागत किया। चक्रवर्ती भरत का पुत्र प्रकीर्ति मोर सेनापति जयकुमार भी वहाँ पञ्चे । सभी अतिथि राजामों के प्रा जाने पर राजा प्रकम्पन ने उत्सव की तैयारी शुरू कर दो। स प्रभा की प्राज्ञा से सौभाग्यशालिनी स्त्रियों ने स लोचना को स्नान कराकर मांगलिक वस्त्राभूषण धारण कराये मोर उससे जिनदेव का पूजन करवाया। राजा प्रकम्पन का सन्देश सुनकर सभी उपस्थित राजा वस्त्रभूषणों से स सज्जित होकर अपने-अपने स्थानों पर बैठ गए। स प्रभा रानी के साथ-साथ राजा अपने पारिवारिक जनों सहित स्वयंवर मण्डप में पहुंचा। उसी समय महेन्द्रदत कंचुको विचित्रांगद देव द्वारा प्रदत्त रथ पर कन्या स लोचना को बिठाकर स्वयंवर भवन में लाया । हेमाङ्गद अपने छोटे भाइयों के साथ रथ के समीप में चल रहा था। तत्पश्चात् सर्वतोभद्र महल पर चढ़कर स लोचना ने सभी राजामों को देखा। पुनः कंचुको के कहने से वह नीचे उतर कर रथ पर चढ़ गई। कंचुकी ने विद्याधर राजामों की मोर उसका रथ चलाना शुरू कर दिया। उसने स लोचना को सनमि मोर विनमि इत्यादि राजानों का परिचय दिया। इसके पश्चात् कंचुकी ने भूमिगोचर राजामों की घोर रथ बढ़ाया पोर सभी का परिचय दिया। अर्ककीति राजामों को छोड़कर स लोचना जयकुमार के समीप गई । कंचुकी ने जयकुमार का भी विस्तृत परिचय दिया। जयकुमार के गुणों से प्रभावित होकर सलोचना ने कंचुको के हाथ से सुन्दर रत्नहार लेकर जयकुमार के गले में पहिना दिया। स्वयंबर विधि के पश्चात् राजा प्रकम्पन अपनी पुत्री पौर जयकुमार के साथ नगर
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy