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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य - एक अध्ययन महापुराण, बृहत्कथाकोश, पारापनाकथाकोश, पुण्यास्रवकथाकोश इत्यादि जैन-ग्रन्थ । इन्हीं की प्रसिद्ध कथानों को हमारे मालोच्य महाकवि श्रीज्ञानसागर ने अपने काव्यों के कथानक का मूल प्राधार बनाया है और अपनी नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा के प्रयोग के बल से उनमें यत्र-तत्र उन्होंने परिवर्तन एवं परिवर्धन भी किये हैं, जिन सबका विवरण इस अध्याय में अपेक्षित विस्तार के साथ प्रस्तुत किया गया है । (ग) जयोदय महाकाव्य कथानक का स्रोत जयोदय महाकाव्य के कथानक का स्रोत श्रीजिनसेनाचार्य श्रीगुण भद्राचार्यविरचित महापुराण (मादिपुराण-भाग २) में मिलता है। उन्होंने इसमें जयकुमार की कथा त्रिचत्वारिंशत्तम पर्व से-सप्तचत्वारिंशत्तम पर्व तक बड़े विस्तार से लिखी है जिसका सारांश इस प्रकार है : कुरुजांगल देश में हस्तिनापुर नामक एक नगर है। उस नगर में सद्गुणसम्पन्न सोमप्रभ नामक एक राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी का नाम लक्ष्मीवती तथा भाई का नाम श्रेयांस था। उसके जय, विजय प्रादि पन्द्रह पुत्र थे। राजा सोमप्रभ और उसके भाई श्रेयांस के वैराग्य धारण करने पर हस्तिनापुर का राज्य जयकुमार को मिला। एकदिन जयकुमार क्रीड़ा के लिए एक उद्यान में गया । वहाँ उसने शीलगुप्त नामक महामुनि को प्रणाम करके उनसे धर्म के विषय में ज्ञान प्राप्त किया। राजा जयकुमार के साथ साथ एक सर्पदम्पति ने भी इस धर्मोपदेश को सुना। वर्षा ऋतु के प्रारम्भ में सर्प की मृत्यु हो जाने पर, एक दिन राजा उसी वन में गया और वहां उपर्युक्त सर्प की सपिणी को किसी अन्य सर्प के साथ देखा । क्रोधाभिभूत होकर जयकुमार ने क्रीड़ा के नीलकमल से उन दोनों को पीटा। जयकुमार के सैनिकों ने भी उन दोनों पर लकड़ी और पत्थर का प्रहार किया। फलस्वरूप सर्प तो मरकर गंगानदी में काली नाम का जलदेवता हुमा और सर्पिणी अपने ही पति, जो कि अब नागकुमार हो चुका था, की पत्नी बनी । उस सपिणी ने नागकुमार को जयकुमार के विरुद्ध भड़काया, तब अपनी स्त्री के वचनों पर विश्वास करके जयकुमार को काटने की इच्छा से नागकुमार उसके घर माया। उस समय जयकुमार अपनी पत्नी श्रीमती को वन का सारा वृत्तान्त सुना रहा था। अपनी स्त्री के वास्तविक व्यवहार को जानकर नागकुमार का क्रोध शान्त हो गया। उसने बहुमल्य रत्नों से जयकमार को सत्कृत किया और अपने मन में उठी सुई दुर्भावना को भी कह दिया, तथा आवश्यकता पड़ने पर मुझे स्मरण करना, ऐसा कहकर अपने गन्तव्य को चला गया। - भरतक्षेत्र में ही वाराणसी नगरी में राजा प्रकम्पन राज्य करता था। उसकी स्त्री का नाम सुप्रभा था। राजा प्रकम्पन के हेमीगढ़, सुकेतुश्री, सुकान्त इत्यादि एक हजार पुत्र और सुलोचना तथा अक्षमाला नाम की दो पुत्रियां यों।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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