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________________ तृतीय अध्याय महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत ग्रन्थों के सोत (क) काव्य-स्रोत : एक सामान्य चिन्तन प्राज प्रायः देखने में प्राता है कि कोई भी सामाजिक जब किसी काव्य को पढ़ता है, तब उसका उद्देश्य काव्य में प्रयुक्त छन्द, प्रलंकार, गुण, रीति आदि का ज्ञान प्राप्त करना नहीं होता, अपितु वह अपनी परिश्रमजन्यग्लानि या मानसिक उलझनों से छुटकारा पाने के लिए अथवा खाली समय.को बिताने के लिए काव्य पढ़ता है। प्रत्येक काव्य का एक वयं-विषय होता है, एक कथानक होता है जो माजके सामाजिक का उद्देश्य पूरा कर सकता है। प्रब प्रश्न यह उठता है कि कवि अपने काव्य में कथानक के रूप में पौराणिक भाख्यानों को लेता है या मनगढन्त किस्सों को, अथवा समाज को वर्तमान व्यवस्था से प्रभावित होकर कुछ मौलिक कथानकों की सर्जना करता है। जो कवि अछुते प्रसंगों को कथानक के रूप में प्रस्तुत करते हैं, उनकी रचना नितान्त मौलिक होगी, इसमें सन्देह नहीं किया जा सकता। किन्तु यदि कवि पुराने कथानकों को भी नया रूप दे सके, उन्हें बासीपन की दुर्गन्ध से दूर हटा सके, तो ऐसे कथानकों की भी मौलिकता हमें अस्वीकार नहीं करनी चाहिए। फिर विद्वानों का मत है कि मौलिकता केवल नवीन वस्तु की रचना में ही नहीं है, वरन् पुरानी वस्तु को नवीनता प्रदान करने में भी है। प्रादिकवि वाल्मीकि की 'रामायण' पर भाषारित भवभूति का 'उत्तररामचरित' नाटक इस तथ्य का श्रेष्ठ उदाहरण है। स्पष्ट है कि कवि के काव्य के कथानक का एक स्रोत होता है। चाहे वह कोई रूढ माख्यान हो, चाहे समाज में नित्यप्रति घटित होने वाली समस्यामों से युक्त घटनाचक्र हो; बस, कवि इसी पाख्यान या घटनाचक्र को कथानक के रूप में ग्रहण कर लेता है। मोर फिर उसे अलंकार, गुण, रीति, भाषा इत्यादि से सजासंबार कर पाठक के मनोरञ्जन हेतु प्रस्तुत कर देता है। (ख) कविवर ज्ञानसागर और उनके काव्य स्रोत जब हम श्रीज्ञानसागर की रचनामों को पढ़ने के बाद साहित्यसमुद्र में उनके कथानक के स्रोत रूपी रत्नों को ढूंढ़ते हैं, तब हमें इन रत्नों के रूप में मिलते हैं१. मानन्दवर्धन, ध्वन्यालोक, १४१४६ .
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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