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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्य-ग्रन्थों के संक्षिप्त कथासार वास्तविकता सामने मा जाने पर रामी अभयमती ने प्रात्महत्या कर ली। मर कर कह पाटलिपुत्र में 'व्यन्तरी१ देवी हो गई । रानी के मात्महत्या कर लेने पर पण्डिता दासी भी चम्पापुरी से भागकर पाटलिपुत्र की प्रसिद्ध वेश्या,-देवदत्ता के पास पहुंची। उसने वेश्या को सारा हाल सुनाकर वेश्या से भी सुदर्शन को विपित करने के लिए कहा। नवम सर्ग दिगम्बर मुनि हो जाने पर सुदर्शन घोर तपश्चरण करते हुए पाटलिपुत्र पहुँचे। वहां घूमते सुदर्शन को देखकर पण्डिता दासी ने देवदत्ता वेश्या को उकसाया। फलस्वरूप उस वेश्या ने सुदर्शन को अपने घर बुलवाया और भनेक प्रकार की काम चेष्टायों से सुदर्शन को वश में करना चाहा। जब उसकी चेष्टायें व्यर्थ हुई तो वह सुदर्शन से बोली कि-'इस अल्पवय में प्रापने यह व्रत क्यों अपनाया है ? परलोक की चिन्ता तो वृद्धावस्था में की जा सकती है। इस समय इस सुन्दर शरीर का. प्रमादर पाप क्यों कर रहे हैं ? वेश्या के इन वचनों को सुनकर मुनिराज सुदर्शन बोले-'यह जो शरीर ऊपर से सुन्दर दिखाई देता है, वह अन्दर तो घृणित पदार्थों से ही भरा हुआ है। नाशवान् शरीर का सख हो प्रात्मा का सुख नहीं है। प्रात्मा को सुख पहुँचाने के लिए शरीर के वशवर्ती नहीं रहना चाहिए । तुम्हारे द्वारा अंगीकृत यह मार्ग पर्वत के समान ऊंचा-नीचा है। तुम इन्द्रिय-विषयों में सुख मानती हो जबकि सुख मात्मा का गुण है, उसका इन्द्रिय विषयों से कोई सम्बन्ध नहीं है।' अपने अनुरागयुक्त वचनों का विरागयुक्त उत्तर पाकर वेश्या सदर्शन को अपनी शय्या पर ले गई और अपने हाव-भाव-तथा मधुर वचनों से सुदर्शन को विचलित करने का प्रयत्न करने लगी। किन्तु सुदर्शन के ऊपर उसकी उन उद्दाम काम चेष्टामों का किचिदपि प्रभाव नहीं पड़ा। इस प्रकार तीन दिन तक भौति-भांति के प्रयत्न करके जब देवदत्ता अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुई, तब वह पाश्चर्यचकित होकर सुदर्शन की प्रशस्ति गाने लगी। उनकी जितेन्द्रियता, धीरता, नम्रता, हड़ता और सदाचार की प्रशंसा करती हुई वह बोली-'मोहान्धकार के कारण मैंने मापके प्रति जो अपराध किया है, उसे क्षमा करें और धर्मयुक्त वचनामृत से मेरा कल्याण करें। देवदत्ता के इन वचनों को सुनकर सुदर्शन ने उसे उपयुक्त पाचरण का १. (विशिष्टः मन्तरो यस्य-(स्त्रीलिङ्ग में-यस्याः) ।) पिशाच, यक्ष मादि । - एक प्रकार का प्रतिप्राकृतिक प्राणी ।-वामन शिवराम प्राप्टे कृत संस्कृत हिन्दी कोश-मोतीलाल बनारसीदास वाराणसी, १९६६–में पृ० ९८५ से
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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