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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्य-ग्रन्थों के संक्षिप्त कथासार गिरकर टूट गया। इस पर दासी ने जोर-जोर से रोना धीर द्वारपाल को प्रपशब्द कहना प्रारम्भ कर दिया। द्वारपाल भी रानी के भय के कारण दासी से क्षमायाचना करने लगा मौर उसने उसे प्रन्दर जाने की अनुमति दे दी। इस प्रकार द्वारपाल की प्रोर से निश्चिन्त होकर चतुरा दासी सुदर्शन को राजमहल में पहुंचाने के लिए प्रतिदिन पुतले लाने लगी । एक दिन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी की रात्रि में सुदर्शन श्मशान में ध्यानावस्था में बैठा था । दासी वहाँ पहुँच गई और सुदर्शन को अकेला पाकर प्रत्यन्त हर्षित हुई। पहले तो उसने सुदर्शन को रानी के सहवास हेतु प्रेरित एवं उत्तेजित किया; पर जब सुदर्शन की प्रोर से कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उसने उन्हें उसी ध्यानदशा में अपनी पीठ पर लाद लिया और रोज की भाँति प्रन्तःपुर में पहुँचकर रानी के पलंग पर उन्हें बिठा दिया । सुदर्शन को अपने समीप पाकर रानी बहुत ही प्रसन्न हुई । उसने अपने वचनों से सुदर्शन को उत्तेजित करने का बहुत प्रयत्न किया । श्रनेक प्रकार की स्पष्ट काम - चेष्टाएं भी कीं, जिनसे सुदर्शन का ध्यान तो टूटा पर बैराग्यभावना धौर भी अधिक ढ़ हो गई । फलस्वरूप उनके ऊपर रानी की कामचेष्टाओं का कुछ भी असर नहीं हुआ । अपनी चेष्टानों को निष्फल देखकर प्रत्यन्त निराश रानी ने दासी से कहा कि इसे बाहर कर दो। पर दासी ने समझाया कि इस प्रकार इसे बाहर ले जाने में भेद खुल जाने का भय है । अतः इसके परित्याग के लिए 'त्रियाचरित' का प्रयोग उचित होगा । यह सुनकर रानी जोर-जोर से चिल्लाकर कहने लगी कि भरे द्वारपालो दौड़ो, जल्दी प्राम्रो, कोई दुष्ट यहीं घुस आता है, मौर मुझे सताना चाहता है; जल्दी प्राम्रो प्रादि आदि । रानी की पुकार को सुनकर द्वारपाल शीघ्रता से अन्दर प्राये प्रोर सुवर्शन को पकड़कर राजा के सामने ले गये। सेवकों के मुंह से समस्त वृत्तान्त सुनकर राजा ने सुदर्शन का मुंह देखना भी पसन्द नहीं किया प्रौर उसे चाण्डाल के हाथों सौंप दिया । हम सगं सुदर्शन सम्बन्धी उक्त घटना जब नगरवासियों के कानों में पड़ी तो लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। कुछ लोग कहने लगे कि यह तो बड़ी रहस्यमय घटना है; श्मशान में स्थित सुदर्शन प्रन्तःपुर में कैसे प्रविष्ट हुमा ? कुछ लोगों ने कहा कि सुदर्शन ऐन्द्रजालिक है तथा कुछ लोगों ने कहा कि यह राजा का षडयन्त्र प्रतीत होता है । सुदर्शन को जब चाण्डाल के यहाँ पहुँचा दिया गया, तब राजा द्वारा चाण्डाल को, सुदर्शन का वध करने का प्रादेश हुप्रा । पर चाण्डाल ने जैसे ही
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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