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अपभ्रंश-साहित्य
सीता भी रावण नामक विद्याधर और उसकी स्त्री मंदोदरी की लड़की थी। इस भविष्यवाणी से कि यह अपने पिता पर आपत्ति लायेगी रावण एक मंजूषा में डालकर उसे किसी खेत में गाड़ देता है । वह जनक को वहीं से प्राप्त होती है और वहीं उसका पालन-पोषण कर राम के साथ उसका विवाह करता है । सीता के अतिरिक्त राम की ७ और पत्नियों ('अवराउ सत्त कणणाउ तासु' ७०. १३. ९) तथा लक्ष्मण की १६ पत्नियों की कल्पना की गई है (७०. १३. १०.)।
नारद के मुख से सीता की प्रशंसा सुन कर रावण उसका हरण करता है। दशरथ स्वप्न देखते हैं कि चन्द्र की पत्नी रोहिणी को राहु ले गया और इससे वह राम पर विपत्ति की कल्पना करते हैं। दशरथ सीताहरण पर जीवित थे । सीता लंका में लाई जाती है । रावण उसका चित्त आकृष्ट न कर सका । सुग्रीव और हनूमान् राम को सहायता का वचन देते हैं और बालि के राज्य को प्राप्त करने के लिए उनकी सहायता मांगते हैं। हनूमान् लंका से सीता का समाचार लाते हैं। इसी बीच लक्ष्मण बालि को मार कर उसका राज्य सुग्रीव को दे देते हैं।
रावण के ऊपर आक्रमण करने से पूर्व राम और लक्ष्मण माया युक्त अस्त्र विद्याओं को प्राप्त करने के लिए उपवास करते हैं। राम और रावण का भयंकर युद्ध होता है। लक्ष्मण रावण को मारते हैं। लंका का राज्य विभीषण को दे दिया जाता है । लक्ष्मण अर्धचक्रवर्ती बन जाते हैं और चिरकाल तक राज्य सुख भोग कर नरक में जाते हैं । समा भाई के वियोग से, विरक्त हो भिक्षु जीवन बिताते हैं और अन्त में निर्वाण प्राप्त करते हैं।
राम, लक्ष्मण और रावण जैन धर्म के अनुसार क्रमशः ८३ बलदेव, वासुदेव और प्रति वासुदेव हैं। ८०वीं संधि में नमि की कथा है । ८१वीं संधि से उत्तर पुराण का द्वितीया या महापुराण का तृतीय खण्ड प्रारम्भ होता है । इस खंड में ८१ से लेकर १०२ तक संधियां हैं। ८१ से ९२ तक मुख्य रूप से महाभारत की कथा है जिसे कवि ने हरिवंश पुराण भी कहा है। महाभारत की कथा से संबद्ध पात्रों के पूर्व जन्म की अनेक कथाओं का कवि ने वर्णन किया है । इस कथा में अनेक स्थल काव्यदृष्टि से सुन्दर और सरस हैं। ८५वीं सन्धि तो काव्य का सुन्दर निदर्शन है। तुतीय खंड के अन्तिम भाग में पार्श्वनाथः (९३-९४), महावीर (९५-९७), जंबू स्वामी (१००),प्रीतिकर (१०१) की कथायें हैं । अन्तिम सन्धि महावीर के निर्वाण के वर्णन से समाप्त होती है।
महापुराण का कथानक पर्याप्त विस्तृत है । ६३ महापुरुषों का वर्णन ही विशाल है फिर उनकी अनेक पूर्व जन्म की कथाओं और अवान्तर कथाओं से कथानक इतना विस्तृत हो गया है कि उसमें से कथा सूत्र को पकड़ना कठिन हो जाता है। महापुराण में जैन धर्मानुकूल ६३ महापुरुषों में कवि ने रामायण और महाभारत की कथा का भी अन्त6 किया है । संस्कृत साहित्य में इन दोनों में प्रत्येक कथा के किसी एक खंड को या उपाख्यान को लेकर स्वतन्त्र महाकाव्यों की रचना हुई है। इनके भी अन्तर्भाव से कथानक की व्यापकता और विशालता की कल्पना सहज में ही की जा सकती है। कवि की दृष्टि में ये दोनों कथाएँ भिन्न-भिन्न एवं महत्त्वपूर्ण थीं। दोनों कथाओं को प्रारम्भ करते