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अपभ्रंश महाकाव्य
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विवाह होता है । जसवई से भरह - भरत -आदि सौ पुत्र और बम्भी नामक कन्या तथा सुनंदा से बाहुबलि नामक पुत्र और सुन्दरी नामक कन्या उत्पन्न हुई । राजकुमार और राजकुमारियों को उनके योग्य अनेक प्रकार की शिक्षा दी जाती है ।' क्रमशः ऋषभ संसार से विरक्त हो जाते हैं और भरत राजगद्दी पर बैठते हैं ( ६-७) । ऋषभ तपस्या द्वारा केवल ज्ञान प्राप्त करते हैं (८-१९ ) । इसके बाद कवि ने चक्रवर्ती भरत के दिग्विजय का वर्णन किया है ( १२ - १९ ) । फिर २७ वीं संधि तक ऋषभ ने अपने साथियों के और अपने पुत्रों के पूर्वजन्मों का अनेक पौराणिक कथाओं से और अलौकिक घटनाओं से ग्रथित, वर्णन किया है । सुलोचना, स्वयंवर में जय को चुनती है । जय और सुलोचना के पूर्वजन्म की कथाओं का, अनेक अलौकिक घटनाओं और चमत्कारों से युक्त, वर्णन है । इन घटनाओं और चमत्कारों के मूल में जिन भक्ति ही प्रधान कारण है ( २८ - ३६) । रिसह निर्वाण पद को प्राप्त करते हैं ( ३७ ) | भरत भी अयोध्या में चिरकाल तक राज्य करते हुए अन्त में निर्वाण पद पाते हैं (३७) ।
उत्तर पुराण के प्रथमार्थ या द्वितीय खंड में ३८ से लेकर ८० तक संधियाँ हैं । इनमें २० तीर्थं करों, ८ बलदेवों, ८ वासुदेवों, ८ प्रतिवासुदेवों, और १० चक्रवत्तियों का वर्णन है । इसी खंड में ३८ से ६८ संधि तक अजितादि तीर्थ करों की कथा है । ६९ से ७९ संधि तक रामायण की कथा है। इसी को जैनी पउम चरिउ - पद्म पुराण - कहते हैं । श्रेणि मन में रामायण-कथा के संबंध में अनेक शंकायें होती है एवं गौतम से उनके समाधान की प्रार्थना करते हैं । कवि की दृष्टि में वाल्मीकि और व्यास के वचनों पर विश्वास करते हुए लोग कुमार्ग कूप में गिरे। अतएव कवि ने जैन धर्म की दृष्टि से रामकथा का उल्लेख किया है ।
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जैन धर्म में राम कथा का रूप वाल्मीकि रामायण मे कुछ भिन्न है । इस राम कथा के विषय में कवि का कथन है कि राम और लक्ष्मण पूर्व जन्म में क्रमशः राजा प्रजापति और उसके मंत्री थे । युवावस्था में वे श्रीदत्त नामक व्यापारी की स्त्री कुवेरदत्ता का अपहरण करते हैं । राजा क्रुद्ध हो मंत्री को आज्ञा देता है कि इन्हें जंगल में ले जाकर मार दो। मंत्री जंगल में ले जाकर उन्हें एक जैन भिक्षु के दर्शन कराता है । वे भी भिक्षु हो तपस्या से जीवन बिताने लगते हैं । दोनों भिक्षु मरणोपरान्त मणिचूल और सुवर्णचूल नामक देवता बनते हैं । अगले जन्म में वे वाराणसी के राजा दशरथ के घर उत्पन्न होते हैं । राजा की सुबला नाम की रानी से राम ( पूर्व जन्म का सुवर्णचूल और विजय) और कैकेयी से लक्ष्मण ( पूर्व जन्म का मणिचूल और चन्द्रचूल ) उत्पन्न होते हैं ( ६९.१२) । इस प्रकार जैन धर्मानुसार राम की माता का नाम सुबला और कैकेयी के पुत्र का नाम लक्ष्मण माना जाता है। राम का वर्ण श्वेत और लक्ष्मण का श्याम था ।
१. म० पु० ५. १८ में कवि ने संस्कृत, प्राकृत भाषाओं की शिक्षा के साथ अपभ्रंश भाषा की शिक्षा का भी उल्लेख किया है ।
२. धम्मीय वास वर्याणिह डिउ अण्णाणु कुमग्ग कूवि पडिउ म० पु० ६९.३.११