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________________ ७४ अपभ्रंश-साहित्य में विभक्त करता है । प्रथम अनुयोग में तीर्थंकरों या प्रसिद्ध महापुरुषों का जीवन एवं कथा साहित्य, द्वितीय में विश्व का भूगोल, तृतीय में गृहस्थों और भिक्षुओं के लिए आचार एवं नियम और चतुर्थ अनुयोग में दर्शनादि का वर्णन पाया जाता है । इस प्रथम महापुराण प्रथमानुयोग की एक शाखा है।। जैन साहित्य में 'पुराण' प्राचीन कथा का सूचक है । महापुराण का अभिप्राय प्राचीन काल की एक महती कथा से है । पुराण में एक ही धर्मात्मा पुरुष या महापुरुष का जीवन अंकित होता है महापुराण में अनेक महापुरुषों का। महापुराण में २४ तीर्थ कर, १२ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ९ प्रतिवासुदेव और ९ बलदेव, इन ६३ महापुरुषोंशलाका पुरुषों के चरित्र का वर्णन किया जाता है । अतएव पुष्पदन्त ने इस ग्रन्थ को 'तिसट्ठि महापुरिस गुणालंकार' नाम भी दिया है । जिनसेन ने अपने महापुराण को त्रिषष्टि लक्षण और हेमचन्द्र ने त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित कहा है। प्रचलित पुराण साहित्य पर विशेषता दिखाने के लिए महापुराण शब्द का प्रयोग किया गया प्रतीत होता है। कथानक-कवि दुर्जनों के भय से महापुराण का आरम्भ करने में संकोच का अनुभव करता है किन्तु भरत प्रोत्साहित करता है कि दुर्जनों का तो स्वभाव ही दोषान्वेषण होता है उस पर ध्यान न दो। कुत्ता पूर्ण चन्द्र पर भौंकता रहे उसका क्या बिगड़ेगा ?२ महापुराण आरम्भ करो । परंपरागत सज्जन प्रशंसा और दुर्जन निन्दा के बाद कवि आत्म विनय के साथ ग्रन्थ आरम्भ करता है। कालिदास रघुवंश का आरम्भ करते हुए अनुभव करता है कि सूर्य वंशी राजाओं का वर्णन उडुप-छोटी नौका-से विशाल समुद्र को पार करने के समान उपहासास्पद होगा। पुष्पदन्त के लिये भी महापुराण उडुप द्वारा समुद्र को मापने के समान है। मगधराज श्रेणिक के अनुरोध करने पर श्री महावीर के शिष्य गौतम, महापुराण की कथा सुनाते हैं। नाभि और मरुदेवी से अयोध्या में ऋषभ का जन्म होता है (३) ऋषभ क्रमशः युवावस्था प्राप्त करते हैं । जसवई और सुणंदा नामक राजकुमारियों से उनका १. ९. १. महापुराण, भूमिका, पृष्ठ ३२ २. भक्कउ छणयंदुहु सारमेउ म० पु. १. ८.७ ३. वही. क्व सूर्य प्रभवो वंशः क्व चाल्प विषयामतिः। तितीषुः दुस्तरं मोहादुडुपेनास्मि सागरम् ॥ रघुवंश, प्रथम सर्ग ५. अइ दुग्गमु होइ महापुराणु कुडएण मवइ को जल णिहाणु, म. पु. १. ९. १३ ६. कथावस्तु के प्रसंग में जहाँ पर भी कोष्ठक के अन्दर संख्या सूचक अंक होगा वहाँ उससे सन्धि संख्या का अभिप्राय समझना चाहिए ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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