SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश महाकाव्य ७.३ भरत के आश्रय में रह कर इन्होंने तिसट्ठपुरिसगुणालंकार या महापुराण की रचना की और उसके बाद भरत के पुत्र नन्न के आश्रय में णायकुमारचरिउ और जसहरचरिउ की रचना की । भरत और नन्न दोनों मान्यखेट में राष्ट्र कूट वंशः कृष्णराज तृतीय या वल्लभराज के मंत्री थे । मान्यखेट, आजकल हैदराबाद राज्य में मल्खेड़ के नाम से प्रसिद्ध है । पुष्पदन्त के समय यह नगर एक अच्छा साहित्यिक केन्द्र था । पुष्पदन्त धनहीन और दुर्बल शरीर थे । उन्हें अपने कवित्व का अभिमान था । इन्होंने अपने को कव्व-पिसल्ल, अभिमान- मेरु, कविकुलतिलक, काव्य- रत्नाकर, सरस्वतीविलय आदि उपाधियों से विभूषित किया है । पुष्पदन्त का समय अन्तः साक्ष्य और बहिः साक्ष्य के आधार पर विद्वानों ने ईसा की १० वीं सदी माना है । । महापुराण या तिसट्ठि महापुरिस गुणालंकार तीन खंडों में विभक्त है । प्रथम खंड जिसे आदि पुराण कहते हैं, द्वितीय खंड - उत्तर पुराण का प्रथमार्थ और तृतीय खंड उत्तरपुराण का द्वितीययावं । तीनों खंडों में १०२ संधियाँ हैं । प्रथम खंड में ३७, द्वितीय में ३८ से ८० और तृतीय में ८१ से १०२ तक तीर्थ कर और प्रथम चक्रवर्ती भरत के जीवन का वर्णन रचना कवि ने राष्ट्रकूट राज कृष्ण तृतीय के मन्त्री भरत के आश्रय में रह कर की। ग्रन्थ का आरम्भ भरत के प्रोत्साहन से ९५९ ई० में हुआ । आदि पर्व के अनन्तर कवि कुछ हतोत्साह हो गया था किन्तु सरस्वती के प्रोत्साहन और भारत की प्रेरणा से कवि ने अवशिष्ट ग्रन्थ को आरम्भ कर ९६५ ई० में समाप्त किया । ४ प्रथम खंड में कवि ने प्रथमः किया है । इस महाकाव्य की महापुराण का अर्थ दिगंबर मतानुसार श्री महावीर स्वामी की वाणी जिन ग्यारह 'अंगों' और चौदह 'पूवों' में प्रथित थी वे सब विच्छिन्न हो गये । जो श्वेताम्बर अंग अब पाये जाते हैं उन्हें दिगम्बर समाज स्वीकार नहीं करता । वह अपना धार्मिक साहित्य प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग इन चार अनुयोगों १. २. तं णिसुणेवि भरहें वुत्तु ताव, भो कइकुल तिलय विमुक्कगाव म० पु० १.५.१. भो भो केसव तरह णवसरह मुह कव्व रयण रयणायर म. पु. १. ४. १०. ४. अग्गइ कइ राउ पुष्यंतु सरसह जिलज । देवियहि सरूउ वण्णs कइयण कुल तिलउ ॥ जसहर चरिउ १. ८. १५ पं० नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास, बम्बई, १९४२, पृष्ठ ३२९ ३. णिब्विण्णउ थिउ जाय महाकद ता सिविणंतरि पत्त सरास वही म० पु० ३८. २. २. ३८. ४-५
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy