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अपभ्रंश महाकाव्य
पावसराज और ग्रीष्मराज के युद्ध में ग्रीष्मराज युद्ध भूमि में मारा गया। पावसराज के विजयोल्लास का वर्णन, उत्प्रेक्षालंकार में कवि ने सुन्दरता से किया है
दद्दुर रडेवि लग्ग णं सज्जण, णं णच्चन्ति मोर खल दुज्जण । णं पूरत सरिउ प्रक्कंद, णं कइ किल किलन्ति पाणंदें। णं परहुय विमुक्कु उग्घोसें, णं विरहिण लवंति परिऊसें। णं सरवर बह अंसु जलोल्लिय, णं गिरिवर हरिसे गंज्जोल्लिय। णं उणहविय दवग्नि विऊएं, णं णच्चिय महि विविह विणोएं। णं अत्यविउ दिवायर दुक्खें, णं पइसरिउ रयणि सइ सोक्खें। रत्त पत्त-तर-पबणाकंपिय, केण वि वहिउ गिभुणं जंपिय ।
प० च० २८.३ पावस में दादुरों का रटना, मोरों का नाचना, सरिताओं का उमड़ना, बंदरों का किलकिलाना, पर्वतों का हर्ष से रोमांचित होना आदि तो सब स्वाभाविक और संगत है किन्तु कोकिल का बोलना कवि संप्रदाय के विरुद्ध है।
स्वयंभू जलक्रीड़ा वर्णन में प्रसिद्ध हैं। सहस्रार्जुन की जलक्रीड़ा का दृश्य निम्नलिखिन उद्धरण में देखिये
अवरोप्पर जलकोल करतह। घण पाणिय पहयर मेल्लंतहुं॥ कहि मि चंद कुंदुज्जल तारेहिं । अवलिउ जलु तुटुंतिहि हारेहि ॥ कहि मि रसिउ उरहिं रसंतिहि । कहि मि फुरिउ कुंडलहि फुरतहि ॥ कहि मि सरस तंबोलारत्तउ । कहि मि बउल कायंबरि मत्तउ ॥ कहि मि फलिह कप्पुरेहि वासिउ । कहि मि सुरहि मिग मय वामीसिउ ॥ कहि मि विविह मणि रयणु जलियउ । कहि मि धोय कज्जल संवलियउ॥ कहि मि बहल कुंकुम पंजरिअउ । कहि मि मलय चंदण रस भरिअउ । कहि मि जक्स कद्दमेण करंबिउ । कहि मि भमर रिछोलिहिं चुंबिउ ॥
१. जल-कोलाए सयंभू चउमुह पवंग गोंग्गह कहाए।
भदं च मच्छ वेंहें अज्ज वि कइणो ण पावंति ॥