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________________ ५६ प्रसार का वर्णन देखिये घत्ता सीयस लक्खणु दास रहि, तरुवर मूले परिट्ठिय जावहि । पसरइ सुकइहे कव्वु जिह, मेह जाल गयणंगणे तावेहि ॥ अपभ्रंश साहित्य पसरइ जेम तिमिरु अण्णाण हो, पसरइ जेम बुद्धि बहु जाण हो । पसरइ जेम पाउ पाविट्ठहो, पसरइ जेम धम्भु धम्मिट्ठहो । पसरइ जेम जोन्ह मयवाहहो, पसरइ जेम कित्ति जगणाहहो । पसरइ जेम घणहीणहो, पसरइ जेम कित्ति चिंत सुकुलोणहो । X X पसरइ जेम सद्द पसरs जेम दवग्गि X सूत्रहो, पसरह जेम रासि नहं वर्णंतरे, पसरइ मेह जालु तह अर्थात् जैसे सुकवि का काव्य, अज्ञानी का अंधकार, ज्ञानी की बुद्धि, पापिष्ठ का पाप, धार्मिक का धर्म, चन्द्र की चन्द्रिका, राजा की कीर्ति, धनहीन की चिंता, सुकुलीन की कीर्ति, निर्धन का क्लेश और वन में दावाग्नि सहसा फैल जाती है इसी प्रकार मेघजाल आकाश में सहसा फैल गया । उपमानों के द्वारा कवि ने क्रिया की तीव्रता अभिव्यक्त की है । उपमान ऐसे हैं जिनका जनसाधारण के साथ अत्यधिक परिचय है अतएव कविता सरल और प्रसाद गुण युक्त है । महान् इन्द्र धनुष को हाथ में लेकर मेघरूपी गज पर सवार होकर पावस राज ने ग्रीष्मराज पर चढ़ाई कर दी। दोनों राजाओं के युद्ध का वर्णन देखिये जल जल जल जलंतु धूमावलि धय दंड झड झड झड झडंतु मेहमहागयघड सूरहो । अंबरे ॥ प० च० २८.१ संपाइउ । मेल्लंतर । धग धग धग धगंतु उद्घाइउ, हस हस हस हसंतु पजलंतउ, जालावलि फुलिंग झेप्पिणु, वरवाउलिखग्गु पहरंतउ, तरुवर रिउ भड विहडतउ, जं उन्हालउ बिट्टु भिडंतउ । कड्ढेप्पणु । भज्जतउ । धणु अप्फालिउ पाउसेएा, तडि टंकार फार दरिसंते । चोsवि जलहर हत्थि हड, णीर सरासणि मुक्क तुरंते । प० च० २८. २. पावसराज ने धनुष का आस्फालन किया, तड़िरूप में टंकार ध्वनि प्रकट हुई, मेघ - गजघटा को प्रेरित किया और जलधारा रूप में सहसा बाण वर्षा कर दी । युद्ध के दृश्य की भयंकरता कवि ने अनुरणनात्मक शब्दों के प्रयोग से प्रकट की है ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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