SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश-साहित्य रचनायें मिलती हैं जिनमें उन्होंने वज्रयान या सहजयान के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। इनकी रचनाओं का संग्रह 'दोहा कोष' और 'बोद्ध गान औ दोहा', 'चर्यापद' आदि नामों से हुआ है। इन्होंने अधिकतर दोहों और भिन्न-भिन्न राग रागनियों में ही लिखा । सिद्धों की रचनायें दो प्रकार की मिलती हैं कुछ में सिद्धान्तों का प्रतिपादन है और कुछ में ब्राह्मणों के कर्मकाण्ड का और प्राचीनरूढ़ि का कटुता से खंडन । रहस्यवाद, सहज मार्ग, गुरु महत्ता, मंत्र तंत्रादि खंडन, काया तीर्थ, कर्म के वाह्यरूप का खंडन आदि इनकी कविता का मुख्य विषय था। . बौद्ध सिद्धों की दोहात्मक और गानबद्ध रचनाओं के अतिरिक्त शैवमतानुयायियों के शैव सिद्धान्त प्रतिपादक कुछ अपभ्रंश पद्य काश्मीर में लिखे संस्कृत और काश्मीरी भाषा के तन्त्र सार, लल्लावाक्यानि आदि कुछ ग्रन्थों में इतस्ततः विकीर्ण मिले हैं । जिनसे अपभ्रंश के क्षेत्र के विस्तार पर प्रकाश पड़ता है। धार्मिक कृतियों का भाषा की दृष्टि से उतना महत्व नहीं जितना भावधारा की दृष्टि से। इनकी रचनाओं में भाषा का विचार गौण है और भावधारा विकास का विचार मुख्य है। इन उपदेशात्मक धार्मिक कृतियों के अतिरिक्त इस प्रकार के फुटकर पद्य भी अन्य प्राकृत के ग्रन्थों में इतस्ततः विकीर्ण मिलते हैं, जिनमें प्रेम, शृंगार, वीर आदि किसी भाव की तीव्रता से और सुन्दरता से व्यंजना मिलती है । इनमें से अनेक पद्य सुन्दर सुभाषित रूप में दिखाई देते हैं। इस प्रकार के मुक्तक पद्य व्याकरण के और छन्दों के अन्थों में उदाहरणस्वरूप भी पाये जाते हैं। रस की दृष्टि से अपभ्रंश काव्यों में हमें मुख्य रूप से शृंगार, बीर और शान्त का ही वर्णन मिलता है। सौन्दर्य वर्णन में शृंगार, पराक्रम और युद्ध के वर्णनों में वीर और संसार की असारता नश्वरता आदि के प्रतिपादन में शांत रस दृष्टिगोचर होता है । शृंगार और वीर रसों के वर्णन होने पर भी प्रधानता शान्त रस की ही रखी गई है। जीवन में यौवन के सुखभोग तथा सुन्दरियों के साथ भोगविलास के प्रसंगों द्वारा शृंगार रस की व्यंजना की गई है। जीवन के कर्म क्षेत्र में अवतरित होकर कर्मभूमि में पराक्रम के प्रदर्शन द्वारा वीर रस की व्यंजना मिलती है। जहां वीरता के प्रदर्शन से चमत्कृत नायिका आत्म समर्पण कर बैठती है, वहां वीर रस, शृंगार रस का सहायक होकर आता है। जहां झरोखे में बैठी सुन्दरी की कल्पना से नायक वीरता प्रदर्शन के लिए संग्रामभूमि में उतरता है, वहां शृगार-रस वीर-रस का सहायक होकर आता है। दोनों रसों की कोई भी स्थिति हो-दोनों का पर्यवसान शान्त रस में दिखाई देता है । जीवनकाल में राज्य प्राप्ति के उपरान्त, वीरता से शत्रुओं का उच्छेद कर, विषय सुख का उपभोग करते हुए अन्त में किसी मुनि के उपदेश-श्रवण द्वारा जीवन और संसार से विरक्त हो जाना, यही संक्षेप में प्रायः सब काव्यों का कथानक है। इसी से इन काव्यों में शान्त रस अंगी और शेष रस उसके अंग हैं। संस्कृत महाकाव्यों की सम्बद्ध शैली की तरह अपभ्रंश के प्रबन्ध काव्य अनेक
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy