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________________ नपभ्रंश-साहित्य का संक्षिप्त परिचय उपरिनिर्दिष्ट अपभ्रंश ग्रंथों के अतिरिक्त चूनरी, चर्चरी, कुलक इत्यादि नामांकित कुछ अपभ्रंश ग्रंथ भी मिले हैं। विनयचन्द्र मुनि की लिखी चुनरी में लेखक ने धार्मिक भावनाओं और सदाचारों की रंगी चूनरी ओढ़ने का उपदेश दिया है । जिनदत्त सूरि रचित चर्चरी में कृतिकार न अपने गुरु का गुणगान किया है। सोलण कृत चर्चरिकाचर्चरी में भी स्तुति ही मिलती है । इसके अतिरिक्त चाचरि स्तुति और गुरु स्तुति चाचरि का उल्लेख भी पत्तन भंडार की ग्रंथ सूची में मिलता है । जिनदत्त सूरि कृत काल-स्वरूप कुलक में भी श्रावकों-गृहस्थियों के लिए धर्मोपदेश दिये गये हैं । इसके अतिरिक्त भावनाकुलक, नवकार फल कुलक, पश्चात्ताप कुलक आदि कुलक ग्रंथों का निर्देश पत्तन भंडार की ग्रंथ सूची में मिलता है। ऊपर अपभ्रंश साहित्य के जिन ग्रंथों का निर्देश किया गया है वे सब अपभ्रंश के महाकाव्य, खंड काव्य और मुक्तक काव्य के सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इन ग्रंथों में अनेक काव्यात्मक सुन्दर स्थल मिलते हैं। महाकाव्य प्रतिपादित लक्षण इनमें भी न्यूनाधिक रूप में पाये जाते हैं। किसी नायक के चरित का वर्णन, शृङ्गार, वीर, शान्तादि रसों का प्रतिपादन, सन्ध्या, रजनी, सूर्योदय, चन्द्रोदय आदि प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन इत्यादि सब लक्षण इन काव्यों में मिलते हैं । इनमें धार्मिक तत्व के प्रतिपादन द्वारा यद्यपि काव्य पूर्ण रूप से परिस्फुटित नहीं हो सका तथापि ये सुन्दर काव्य है, इसमें कोई सन्देह नहीं। इन प्रबन्धकाव्यों में से कतिपय प्रबन्धकाव्यों में कवि ने नायक के चरित वर्णन के साथ-साथ उसके पूर्व जन्म की अनेक कथाओं और अवान्तर कथाओं का भी मिश्रण कर दिया है, जिससे उनके कथात्मक सम्बन्ध का भली प्रकार निर्वाह नहीं हो सका। इसी कारण प्रबन्ध-काव्य के वाह्यरूप संघठन में संस्कृत-प्राकृत प्रबन्ध-काव्यों की अपेक्षा कुछ शिथिलता आ गई है। उपरिलिखित विषयों के अतिरिक्त अपभ्रंश में अनेक उपदेशात्मक ग्रंथ भी मिलते हैं। इन ग्रंथों में काव्य की अपेक्षा धार्मिक उपदेश भावना प्रधान है । काव्य-रस गौण है धर्म-भाव प्रधान । इस प्रकार की उपदेशात्मक कृतियां अधिकतर जैन धर्म के उपदेशकों की ही लिखी हुई हैं। इनमें से कुछ में आध्यात्मिक तत्व प्रधान है कुछ में आधिभौतिक उपदेश तत्व । प्रथम प्रकार की कृतियों में आत्म-स्वरूप, आत्म-ज्ञान, संसारनश्वरता, विषयत्याग, वैराग्यभावना आदि का प्रतिपादन है। जैसे योगीन्दु का परमात्म प्रकाश और योग सार, मुनि रामसिंह का पाहुड़ दोहा, सुप्रभाचार्य का वैराग्य सार इत्यादि । दूसरे प्रकार की कृतियों में श्रावकोचित कर्तव्यों और धर्मों के पालन का विधान है। नैतिक और सदाचारमय जीवन को उन्नत करने वाले उपदेशों का प्रतिपादन है। इस प्रकार की रचनाओं में देवसेन का सावयधम्मदोहा, जिनदत्त सूरि के उपदेश रसायन रास और कालस्वरूप कुलक, जयदेव मुनि की भावना संधि प्रकरण और महेश्वर सूरि की संयममंजरी आदि रचनाओं का अन्तर्भाव किया जा सकता है। जैन धर्म सम्बन्धी उपदेशात्मक रचनामों के समान बौद्ध सिद्धों की भी कुछ फुटकर
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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