SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बे भ्रंश- साहित्य 1 करते रहते हैं । धमं की विजय के लिए कवि ने इन्हीं तत्त्वों का आश्रय लिया है। विद्याधर, देव आदि का समय पड़ने पर उपस्थित हो जाना संभवतः कुछ अस्वाभाविक प्रतीत होता हो किन्तु इन चरित काव्यों में उनकी उपस्थिति का सम्बन्ध पूर्व जन्म के कर्मों से बतलाकर उस अस्वाभाविकता को दूर करने का प्रयत्न किया गया है। तंत्र-मंत्र में विश्वास, मुनियों की वाणी में श्रद्धा, स्वप्नफल और शकुनों में विश्वास करने वाले व्यक्ति भी इन प्रबंध काव्यों में दिखाई देते हैं । अपभ्रंश साहित्य में धर्म-निरपेक्ष लौकिक- कथानक को लेकर लिखे गये प्रबन्धकाव्यों की संख्या अति स्वल्प उपलब्ध हुई है । विद्यापति की 'कीर्तिलता' में राजा के चरित का वर्णन है वह ऐतिहासिक प्रबन्ध-काव्य कहा जा सकता है । अब्दुल रहमान के सन्देश रासक में एक विरहिणी का अपने प्रियतम के प्रति सन्देश है । यह सन्देशकाव्य ही पूर्ण रूप से लौकिक प्रबन्ध-काव्य है । इस प्रकार के अन्य प्रबन्ध काव्य भी लिखे गये होंगे जिनका जैन भण्डारों के धार्मिक ग्रन्थ समुदाय के साथ प्रवेश न हो का होगा और अतएव वे सुरक्षित न रह सके । कथात्मक ग्रन्थों के अतिरिक्त अपभ्रंश में 'जीवनःकरण संलाप कथा' नामक एक रूपक-काव्य भी लिखा गया । यह सौमप्रभाचार्य कृत 'कुमारपाल प्रतिबोध' नामक प्राकृत ग्रंथ का अंश है। इसमें जीव, मन, इन्द्रियों आदि को पात्र का रूप देकर उपस्थित किया गया है । इसी प्रकार हरिदेव कृत 'मदन पराजय' भी इसी प्रकार का एक रूपककाव्य है । इसमें कवि ने काम, मोह, अहंकार, अज्ञान, रागद्वेष आदि भावों को पात्रों का रूप देकर प्रतीक रूपक काव्य की रचना की है । अपभ्रंश साहित्य में कुछ रासा ग्रंथ भी उपलब्ध हुए हैं । 'पृथ्वीराज रासो', मूलरूप में जिसके अपभ्रंश में होने की कल्पना दृढ़ होती जा रही है, और 'सन्देश रासक', जो एक सन्देश काव्य है, को छोड़कर प्रायः सभी उपलब्ध रासा ग्रंथों का विषय धार्मिक ही है । जिनदत्तसूरि कृत 'उपदेशरसायन' रास में धार्मिकों के कृत्यों का उल्लेख किया है और गृहस्थों को सदुपदेश दिये हैं । इसके अतिरिक्त जिनप्रभरचित 'नेमि रास' और 'अन्त-रंगरास' नामक दो अन्य अपभ्रंश रासग्रंथों का भी उल्लेख मिलता है । इसके अतिरिक्त 'जंबू स्वामि रास', 'समरा रास', 'रेवंत गिरि रास' आदि कुछ प्राचीन गुजराती से प्रभावित अपभ्रंश रास भी लिखे गये। इन सब में राजयश के स्थान पर धार्मिकता का अंश है। रासा ग्रंथों में धार्मिक पुरुष के चरित वर्णन के अतिरिक्त गुरु स्तुति, धार्मिक उपदेश, व्रत दान सम्बन्धी कथाओं का उल्लेख भी मिलता है । रासा ग्रंथों के अतिरिक्त अपभ्रंश साहित्य में कुछ स्तोत्र ग्रंथ भी मिलते हैं । इनमें किसी तीर्थंकर, पौराणिक पुरुष या गुरु की स्तुति मिलती है । अभयदेव सूरि-कृत जय तिहुयण स्तोत्र, ऋषभजिन स्तोत्र, धर्मसूरि स्तुति आदि इसी कोटि के ग्रंथ हैं । सूरि स्तुति में कवि ने बारह मासों में गुरु के नामों से स्तुति की है । अपभ्रंश के सन्धि ग्रंथ भी अनेक मिले हैं। इनमें एक या दो सन्धियों में किसी पौराणिक पुरुष या प्रसिद्ध पुरुष का चरित संक्षेप में वर्णित है ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy