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________________ अपभ्रंश साहित्य का संक्षिप्त परिचय नहीं । यही कारण है कि पुराण, चरितादि सभी ग्रंथ अनेक कथाओं और अवान्तर कथाओं से ओतप्रोत हैं । धार्मिक विषय का प्रतिपादन भी कथाओं से समन्वित ग्रंथों द्वारा किया गया है। श्रीचन्द्र का लिखा हुआ 'कथाकोष' अनेक धार्मिक और उपदेशप्रद कथाओं का भंडार है। अमरकीति रचित 'छक्कम्मोवएस' (षट् कर्मोपदेश) में कवि ने गृहस्थों को देव-पूजा, गुरुसेवा, शास्त्राभ्यास, संयम, तप और दान इन षट्कर्मों के पालन का उपदेश अनेक सुन्दर कथाओं द्वारा दिया है। इस प्रकार के कथा ग्रंथों के अतिरिक्त भविसयत्त कहा,पज्जुण्ह कहा, स्थूलिभद्र कथा आदि स्वतन्त्र कथा ग्रंथ भी लिखे गये। कथायें किसी प्रसिद्ध पुरुष के चरित वर्णन के अतिरिक्त अनेक व्रतादि के माहात्म्य को प्रदर्शित करने के लिए भी लिखी गई। __ जैनियों के लिखे चरिउ ग्रंथों में किसी महापुरुष का चरित अंकित होता है। इन ग्रन्थों को कवियों ने रास नहीं कहा यद्यपि रास ग्रन्थों में भी चरित वर्णन मिलता है जैसे पृथ्वीराज रासो। ये चरिउ काव्य तथा कथात्मक ग्रन्थ प्रायः धर्म के आवरण से आवृत हैं । अधिकांश चरिउ काव्य प्रेमाख्यानक या प्रेमकथापरक काव्य हैं। इनमें वर्णित प्रेमकथाएँ या तो उस काल में प्रचलित थीं या इन्हें प्रचलित कथाओं के माधार पर कवियों ने स्वयं अपनी कल्पना से एक नया रूप दे डाला । जो भी हो इन सुन्दर और सरस प्रेम कथामों को उपदेश, नीति और धर्मतत्त्वों से मिश्रित कर कवियों ने धर्मकथा बना डाला। जैनाचार्यों द्वारा प्राकृत में लिखित 'समराइच्च कहा' और 'वसुदेव हिण्डि' जैसी आदर्श धर्म कथाओं की परम्परा इन अपभ्रंश के चरित काव्यों में चलती हई प्रतीत होती है। इन विविध चरित काव्यों में वर्णित प्रेम कथा में प्रेम का आरम्भ प्रायः समानरूप से ही होता है-गुण श्रवण से, चित्र दर्शन से या साक्षादर्शन से । इस प्रेम की परिणति विवाह में होती है। नायक और नायिका के संमिलन में कुछ प्रयत्न नायक की ओर से भी होता है। अनेक नायकों को सिंहल की यात्रा करनी पड़ती है और अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं। मेम कथा में प्रतिनायक की उपस्थिति भी अनेक चरित ग्रंथों में मिलती है । प्रतिनायक की कल्पना नायक के चरित्र को उज्ज्वल करने के लिए ही की जाती है किन्तु अपभ्रंश काव्यों में प्रतिनायक का चरित्र पूर्ण रूप से विकसित हुआ नहीं दिखाई देता। नायक को नायिका की प्राप्ति के अनन्तर भी अनेक बार संकट भोगने पड़ते हैं । इसका कारण पूर्व जन्म के कर्मों का विपाक होता है। इन सब चरित काव्यों में आश्चर्यतत्त्व अयवा चमत्कार बहुलता से दिखाई देते हैं। विद्याधर, यक्ष, गन्धर्व, देव आदि समय-समय पर प्रकट होकर पात्रों की सहायता 8. Alfos ata f47–Magic and Miracle in Jain Literature, Jain Antiquary, भाग ७, संख्या २, पृष्ठ ८८; भाग ८, संख्या १, पृष्ठ ९; भाग ८, संख्या २, पृष्ठ ५७-६८।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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