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________________ अपभ्रंश - साहित्य को सांत्वना दी। लंका दहन के प्रसंग का निर्देश नहीं किया गया। युद्ध में लक्ष्मण रावण का सिर काटा । ४० राम और लक्ष्मण दोनों अयोध्या लौटे । राम की आठ हजार और लक्ष्मण की सोलह हज़ार रानियों का उल्लेख किया गया है । लोकापवाद के कारण सीता-निर्वासन की इसमें चर्चा नहीं । लक्ष्मण एक असाध्य रोग से मर कर रावणवध के कारण, नरक को गये । इससे विक्षुब्ध होकर राम ने लक्ष्मण के पुत्र पृथ्वीसुन्दर को राज्य पद पर और सीता 'पुत्र अजितंजय को युवराज पद पर अभिषिक्त करके स्वयं जैन धर्म में दीक्षा ले ली और अन्त में मुक्ति प्राप्त की। सीता ने भी अनेक रानियों के साथ जैन धर्म में दीक्षा ले ली और अन्त में अच्युत स्वर्गं प्राप्त किया । जैन - राम कथा में कई असंभव घटनाओं की संभव रूप में व्याख्या करने का प्रयत्न किया गया है । इस में वानर और राक्षस दोनों विद्याधर वंश की भिन्न-भिन्न शाखायें मानी गई हैं । जैनियों के अनुसार विद्याधर मनुष्य ही माने गये हैं । उन्हें कामरूपत्व, आकाशगामिनी आदि अनेक विद्यायें सिद्ध थीं अतएव उनका नाम विद्याधर पड़ा । बानर वंशी विद्याघरों की ध्वजाओं, महलों और छतों के शिखर पर वानरों के चिह्न हुआ करते थे, प्रतएव उन्हें वानर कहा जाता था । अपभ्रंश के कवियों नें इन्हीं में से किसी परम्परा को लेकर राम कथा रची। स्वयंभू ने विमलसूरि के पउम चरिय की और पुष्पदन्त ने गुणभद्र के उत्तर पुराण की परंपरा का अपने पुराणों में अनुगमन किया है । चरित ग्रंथों में किसी तीर्थ कर या महापुरुष के चरित्र का वर्णन मिलता है । जैसे जसहर चरिउ, पासणाह चरिउ, वड्ढमाण चरिउ, णेमिणाह चरिउ इत्यादि । उपरिनिर्दिष्ट ६३ महापुरुषों के अतिरिक्त भी अन्य धार्मिक पुरुषों के जीवन चरित से संबद्ध चरितग्रंथ लिखे गये । जैसे— पउम सिरी चरिउ, भविसयत्त चरिउ, सुदंसण चरिउ इत्यादि । इनके अतिरिक्त अपभ्रंश साहित्य में अनेक कथात्मक ग्रंथ भी मिलते हैं । अपभ्रंश - साहित्य के ऋवियों का लक्ष्य जनसाधारण के हृदय तक पहुँच कर उनको सदाचार की दृष्टि से ऊँचा उठाना था। जैनाचार्यों ने शिक्षित और पंडित वर्ग के लिए ही न लिख कर अशिक्षित और साधारण वर्ग के लिए भी लिखा । को प्रभावित करने के लिए कथात्मक साहित्य से बढ़ कर अच्छा और कोई साधन २ जनसाधारण १ के. भुजबली शास्त्री - जैन रामायण का रावण; जैन सिद्धान्त भास्कर भाग ६, किरण १, पृष्ठ १; नाथूराम प्रेमी – जैन साहित्य और इतिहास, पृ० २७९; रेवरेंड फॉदर कामिल बुल्के - राम कथा, प्रकाशक हिन्दी परिषद्, विश्वविद्यालय प्रयाग, सन् १९५० ई०, पृष्ठ ६०-७१. Maurice Winternitz, A History of Indian Culture, अंग्रेजी अनुवाद, कलकत्ता विश्वविद्यालय, सन् १९३३, भाग २, पृ० ४७५
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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