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________________ अपभ्रंश-साहित्य दोहा प्रयुक्त हुआ है।' कवि यश:कीति ने अपने पांडव पुराण की २८वीं सन्धि के कड़वकों के आरम्भ में दोहउ दोधक-दोहा-प्रयुक्त किया है। कड़वक में कहीं कहीं चौपाई मिल जाती है। इस प्रकार अभी तक प्राप्त अपभ्रंश ग्रन्थों में यद्यपि कोई ऐसा काव्य उपलब्ध नहीं हो सका जिसमें चौपाई-दोहा पद्धति का स्पष्ट प्रयोग हुआ हो तथापि ऐसी आशा की जा सकती है कि संभवतः कोई ऐसा काव्य भविष्य में उपलब्ध हो जाय जिसमें इस पद्धति के दर्शन हों। अद्यावधि प्राप्त अपभ्रंश सामग्री से ऊपर दिये गयो उदाहरणों के आधार पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जायसी के पद्मावत की चौपाई दोहा शैली का बीज अपभ्रंश-साहित्य में था उत्तर कालीन हिन्दी कवियों ने नवीनता की दृष्टि से कड़वकों के आरम्भ में प्रयुक्त दोहे को अन्त में रखना प्रारम्भ कर दिया। भक्तिकाल की तीसरी धारा, सगुण रूप की राम भक्ति शाखा में दिखाई देती है। इसके मुख्य कवि तुलसीदास हैं और उनकी मुख्य कृति रामचरित मानस है । रामचरित मानस में धार्मिकता का ध्यान इतना अधिक है कि तुलसी के राम भगवान् के रूप में हमारे सामने आते हैं। राम कथा का तुलसीदास ने एक सरोवर और एक सरिता के रूप में वर्णन किया है। रामचरितमानस यह नाम भी इसके सरोवर की ओर संकेत करता है । सरोवर का रूपक देखिये :दोहा-सुठि सुन्दर संवाद वर बिरचे बुद्धि विचारि। तेहि एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि ॥ . सप्त प्रबंध सुभग सोपाना । ग्यान नयन निरखत मन माना ।। रघपति महिमा अगुन अबाधा । बरनब सोइ वर वारि अगाधा ॥ राम सीय जस सलिल सुधा सम। उपमा बीचि विलास मनोरम ॥ पुरइनि सघन चार चौपाई। जुगति भंजु मनि सीप सुहाई ॥ छंद सोरठा सुंदर दोहा। सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा।। अरथ अनूप सुभाव सुभासा । सोइ पराग मकरंद सुबासा ॥ सुकृत पुंज मंजुल अलि माला ! ग्यान विराग बिचार मराला ॥ धुनि अवरेब कबित गुन जाती। मौन मनोहर ते बहु भाँती ।। अरथ धरम कामादिक चारी। कहब ग्यान विग्यान विचारी ॥ नव रस जप तप जोग विरागा। ते सब जल चर चारु तड़ागा ॥' १. वही, पृ० २३८। २. दे० छठा अध्याय पृ० १२१ । ३. कल्याण, मानसांक, बालकांड, ३७ ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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