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अपभ्रंश-साहित्य का हिन्दी-साहित्य पर प्रभाव ३९५ अनुकरण पर इन कवियों ने वहां जाकर अनुपम सुन्दरी और प्रभूत धन सम्पत्ति की प्राप्ति का उल्लेख किया है। जायसी भी उसी कथा से प्रभावित हुआ है।
जायसी के पद्मावत और अन्य अपभ्रंश काव्यों के सादृश्य के अतिरिक्त जायसी की रचना-शैली, वर्णन, शैली और संदेश रासक की शैलियों में बहुत साम्य है। दोनों के मंगलाचरण भाव की दृष्टि से एक रूप हैं। एक में विस्तार है दूसरे में संक्षेप । इसी प्रकार दोनों के वियोग वर्णनों में भी पर्याप्त साम्य है । अतएव जायसी के सामने संदेश रासक था, ऐसी कल्पना असंगत नहीं प्रतीत होती। . जायसी की वस्तु-वर्णन-शैली और अब्दुल रहमान की वस्तु-वर्णन-शैली में एक और समानता मिलती है। दोनों ने वस्तु वर्णन में कहीं कहीं वस्तू गणना मात्र करदी है। जायसी ने बादशाह-भोज-खंड में अनेक व्यंजनों, पकवानों, सब्जियों, मिठाइयों इत्यादि की लंबी सूची दी है। इसी प्रकार अब्दुल रहमान ने उद्यान वर्णन में अनेक प्रकार की वनस्पतियों के नामों की सूची दे दी है। इस प्रकार की वस्तुगणना की प्रवृत्ति पुष्प दन्त के जसहर चरिउ में भी पाई जाती है।
उपरिनिर्दिष्ट संकेतों के आधार पर जायसी का अब्दुल रहमान के संदेश रासक से प्रभावित होना स्पष्ट प्रतीत होता है।
बाह्य रूप की दृष्टि से ये प्रेमाख्यानक काव्य चौपाई-दोहा शैली में लिखे गये हैं। कुछ चौपाइयों के अनन्तर एक दोहे का प्रयोग वैसा ही है जैसा कि अपभ्रंश काव्यों में कड़वकों के अन्त में घता का प्रयोग । अपभ्रंश काव्यों में कड़वकों में पद्धरी--पज्झटिकापद्धड़िया, पादाकुलक, अलिल्लह इत्यादि छन्दों का प्रयोग किया गया है। ये सव छन्द १६ मात्राओं के हैं और चौपाई से बहुत मिलते हैं। धवल ने अपने हरिवंश पुराण में कुछ कड़वकों में चौपाई का प्रयोग किया है किन्तु इनके अन्त में घत्ता दोहा नहीं । कहीं कहीं कड़वक में चौपाई का प्रयोग नहीं किन्तु अन्तिम घत्ता कहीं दोहे के समान और कहीं साक्षात् दोहा है। अमर कीति रचित छक्कम्मोवएस की आठवीं सन्धि के प्रत्येक कड़वक के आरम्भ में दोहा प्रयुक्त हुआ है और कड़वक में चौपाई का प्रयोग किया गया है । कवि देव सेन गणि ने अपने सुलोचना चरिउ नामक काव्य की १८वीं सन्धिके कड़वकों के आरम्भ में दोहयं-दोहे का प्रयोग किया है। कवि धनपाल के बाहुबलि चरिउ काव्य की ११ वी सन्धि के कड़वकों के आरम्भ में दोहड़ा१. प्रो० एच० सी० भायाणी, अब्दुल रहमान्स संदेश रासक एंड जायसीज़
पद्मावती, भारतीय विद्या, भाग १०, १९४८ ई०, पृ० ८१। २. जायसी ग्रंथावली, पृ० २६९ । ३. संदेश रासक प० २४ । ४. दे० छठा अध्याय, पृ० १०९। ५. दे० तेरहवां अध्याय, पृ० ३५६ । ६. दे० सातवां अध्याय, पृ० २२० ।