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________________ अपभ्रंश-साहित्य का हिन्दी-साहित्य पर प्रभाव इसी प्रकार रामकथा का सरिता के रूप में वर्णन भी तुलसीदास ने किया है।' स्वयंभू के पउम चरिय में भी रामकथा का सरिता के रूप में उल्लेख मिलता है : वड्ढमान मुह कुहर विणिग्गय राम कहाणइ एह कमागय । अक्खर पास जलोह मणोहर सुअलंकार सद्द मछोहर । दीहसमास पवाहा वंकिय सक्कय पायय पुलिणालंकिय । देसी भासा उभय तडुज्जल कवि दुक्कर घण सद्द सिलायल। अस्थ बहल कल्लोलाणिट्ठिय आसासय सम तूह परिट्ठिय । एह रामकह-सरि सोहंती गणहर देविहिं दिट्ठ वहंती । पउम चरिउ, १.२. अर्थात् यह रामकथा रूपी सरिता क्रम से चली आ रही है । इसमें अक्षर समूह सुन्दर जल समूह है, सुन्दर अलंकार और शब्द मत्स्य गृह हैं, दीर्घ समास वक्रप्रवाह है, संस्कृत और प्राकृत अलंकृत पुलिन हैं, देशी भाषा दोनों उज्ज्वल तट हैं, कवि से प्रयुक्त कठिन और सघन शब्द शिलातल के समान हैं, अर्थ बहुलता उठती हुई तरंगें हैं. इस प्रकार यह रामकथा शोभित होती है। रामचरितमानस की चौपाई दोहा की शैली भी स्वयंभू के पउम चरिउ की कड़वक शैली के समान है। चौपाई और इतर छंद के व्यवधान की शैली जिसको जायसी और तुलसी ने अपने प्रबन्ध काव्यों में स्वीकार किया, वह अपभ्रंश शैली का अनुकरण है । अंतर केवल यह है कि हिन्दी काव्य में व्यवधान दोहा अथवा सोरठा द्वारा होता है और अपभ्रंश काव्य में सोलह मात्राओं के छन्दों में व्यवधान “धत्ता" का है। इन कुछ समानताओं को देखकर कतिपय विद्वानों ने कल्पना की है कि तुलसीदास रामचरित की रचना में सम्भवतः स्वयंभू से प्रभावित थे। रामायण के आरम्भ में ही __ "नाना पुराण निगमागम संमतं यद् । रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि "। बालकांड १. इत्यादि पद्य में "क्वचिदन्यतोऽपि" से तुलसी बाबा ने स्वयंभू की रामायण की ओर ही संकेत किया है, ऐसा राहुलजी का विचार है । ___ संदेश रासक और रामचरित मानस के निम्नलिखित पद्यों की तुलना से प्रतीत होता है कि तुलसी दास संदेश रासक से परिचित थे। मह हिययं रयण निही, महियं गुरु मंदरेण तं णिच्चं । उम्मूलियं असेसं, सुहरयणं कड्ढियं च तुह पिम्मे ॥ सं० रा० २.११९ अर्थात् मेरा हृदय समुद्र है, उसे तुम्हारे विशाल विरह-मंदर ने नित्य मथ-मथ कर १. वही, बालकांड ३९-४१। २. हिन्दी काव्यधारा, भूमिका, पृ० ५२।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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