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________________ अपभ्रंश-साहित्य का हिन्दी-साहित्य पर प्रभाव ने । यद्यपि उतना अक्खड़पन सिद्धों की कविता में नहीं जितना कि कबीर की कविता में किन्तु कर्मकाण्ड का विरोध सिद्धों और सन्तों दोनों में मिलता है। जैन धर्माचार्यों ने बाह्य कर्म-कलाप की अपेक्षा आन्तरिक शुद्धि पर अधिक बल दिया है। कबीर भी इसी भाव धारा के पोषक हैं। मुनिराम सिंह पाहुड़ दोहा में कहते हैं "मुंडिय मुंडिय मुंडिया सिर मुंडिउ चित्त ण मुंडिया। चित्तहं मुंडणु जि कियउ संसारहं खंडणु ति कियउ ॥"१३५ कबीर कहते हैं "दाढ़ी मूंछ मुड़ाय के, हुआ घोटम घोट । मन को क्यों नहीं मूड़िये, जामे भरिया खोट ॥" इसी प्रकार मुनि रामसिंह और कबीर प्रभृति सन्त ऐसे ज्ञान को व्यर्थ समझते हैं जिस से आत्मज्ञान नहीं होता। मुनि रामसिंह कहते हैं-- "बहुयइं पढियई मूढ़ पर तालू सुक्कइ जेण। एक्कु जि अक्खर तं पढहु सिव पुरि गम्मइ जेण ॥"९७ कबीर कहते हैं "पढ़ पढ़ के सब जग मुआ, पंडित भया न कोय । एको आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ॥" इसी प्रकार गुरु की महत्ता का प्रतिपादन जैनाचार्यों और सिद्धों ने किया है । सुगुरु और कुगुरु को क्रमशः गौ के दूध और आक के दूध के समान बताया गया है।' वही गुरु की महत्ता इन सन्त कवियों में भी मिलती है। जाति का भेद भाव सिद्धों में नहीं था। वज्रचार्यों ने तो नीचजाति की स्त्री को महामुद्रा बनाने का आदेश दिया। यही जात पांत विरोधी भावना इन संत कवियों में भी मिलती है। जिस प्रकार प्रेमी और प्रेमिका की भावना कबीर ने अभिव्यक्त की है वही भावना सिद्धों के पदों में और जैनों के दोहों में मिलती है। जिस प्रकार जैनों और सिद्धों ने अपनी धर्म भावना और उपदेशात्मक प्रवृत्ति के प्रसार के लिये मुख्यतया दोहों और गीतों को चुना इसी प्रकार इन सन्त कवियों ने भी अपने भाव को अभिव्यक्त करने के लिये दोहों और पदों को चुना। १. देखिये पीछे नवां अध्याय, अपभ्रंश मुक्तक काव्य (१), पृ० २९० । २. कबीर कहते हैं:-- ___"गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागू पाय । बलिहारी गुरुदेव को जिन गोविन्द दियो बताय॥" ३. "ह सगुणी पिउ णिग्गुणउ, णिल्लकखणु णीसंगु । एकहिं अंगि वसंतयहं मिलिहु प अंगहि अंगु॥" पाहुड़ दोहा, १००
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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